Learning Sanskrit by fresh approach – Lesson 21
संस्कृत-भाषायाः नूतनाध्ययनस्य एकविन्शतितमः (२१) पाठः
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When studying the श्लोकः about ज्ञानम्, we saw how the prefixes lend very special meaning to words.
Here is a श्लोकः which says just that. This श्लोकः is selected for this lesson to develop a study of उपसर्गाः
उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते ।
प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत् ।।As has been discussed earlier, every prefix (उपसर्ग:) has specific meaning. Here is a list of the उपसर्गाः and their meanings.
(दुर्, दुस्, दुश् दुष्) are variations of दुः
Likewise, (निर्, निस्, निश् निष्) are variations of नि:
The prefixes अ, अन्, दुः and नि: always make antonyms of negative meaning.
Some prefixes, especially, अति, उप, प्रति, वि, have a range of different shades of meaning,
sometimes even contrary to each other !
See, वि = विशेषेण or also विपरीतं !
This is what makes study of prefixes an important aspect of study of Sanskrit.Many prefixes can be understood as pairs making antonyms of each other. For example,
As was seen in the श्लोकः about ज्ञानम्, more than one उपसर्गाः may also be used in conjunction.
श्रीमद्भगवद्गीता is replete with any number of examples of most thoughtful use of prefixes उपसर्गाः
Study of श्रीमद्भगवद्गीता can be thorough only with the study of significance of every उपसर्ग: in every word.
For example, there are these two द्वौ श्लोकौ in चतुर्थेऽध्याये which read -
प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत् ।।As has been discussed earlier, every prefix (उपसर्ग:) has specific meaning. Here is a list of the उपसर्गाः and their meanings.
उपसर्ग: | meaning(s) | Example(s) | उपसर्ग: | meaning(s) | Example(s) | उपसर्ग: | meaning(s) | Example(s) | |||
1 | अ | not | असत्य | 2 | अति | excessive, beyond | अतीतः | 3 | अधि | firm, sure | अधिकारः |
4 | अन् | not | अनर्थः | 5 | अनु | following | अनुज: | 6 | अप | away | अपहार: |
7 | अभि | अभिमान: | 8 | अव | lower | अवमान: | 9 | आ | towards | आहार: | |
10 | उत् | upward | उद्धारः | 11 | उप | near, nearly | उपहार: | 12 | दुः (दुर्, दुस्, दुश् दुष्)* | bad, ill | दुर्जन: |
13 | नि | निजः नितान्तम् | नियमः निपातः | 14 | नि: (निर्, निस्, निश् निष्)* | away | निःस्वनः निर्दयी निश्चयः निष्पन्नं | 15 | परा | opposite of | पराजयः |
16 | परि | comprehensive | परिहार: | 17 | प्र | प्रकर्षेण | प्रहार: | 18 | प्रति | towards, firmly at | प्रतिष्ठा, प्रतिशोधः |
19 | वि | विशेषेण विपरीतं | विहार: वियोगः | 20 | स | with | सस्नेहम् | 21 | सत् | Good | सच्छीलः |
22 | सम् (सन्) | together, consummately | संहार: | 23 | सु | good | सुजन: |
(दुर्, दुस्, दुश् दुष्) are variations of दुः
Likewise, (निर्, निस्, निश् निष्) are variations of नि:
The prefixes अ, अन्, दुः and नि: always make antonyms of negative meaning.
Some prefixes, especially, अति, उप, प्रति, वि, have a range of different shades of meaning,
sometimes even contrary to each other !
See, वि = विशेषेण or also विपरीतं !
This is what makes study of prefixes an important aspect of study of Sanskrit.Many prefixes can be understood as pairs making antonyms of each other. For example,
Positive | Negative | Example | Meaning | Example | Meaning |
सु | दुः | सुख | pleasure or happiness | दुःख | sorrow |
सु | दुर् | सुजन | gentleman | दुर्जन | bad person |
आ | नि: (निर्, निस्) | आगमनम् | Coming | निर्गमनम् | going |
अभि | अव | अभिमान | pride | अवमान | disrespect, dishonour |
सन् | अप | सन्मान | honour | अपमान | insult |
आ | अप | आकर्षण | attraction | अपकर्षण | repulsion |
अनु | प्रति | अनुकूल | favourable | प्रतिकूल | adverse |
प्र | नि | प्रवृत्तिः | motivation | निवृत्तिः | withdrawal |
सम् (सन्) | वि | संयोगः | coming together | वियोगः | separation |
As was seen in the श्लोकः about ज्ञानम्, more than one उपसर्गाः may also be used in conjunction.
combination of उपसर्गाः | Example | meaning |
प्र + नि | प्रणिपातः | bowing or intensive, thorough analysis |
प्रति + आ = प्रत्या | प्रत्याहार | one of the eight aspects of Yoga |
नि: + आ = निरा | निराहार | fasting |
नि: + अभि = निर | निरभिमान | freedom from ego |
अन् + आ = अना | अनावृत | uncovered, exposed, unclothed |
उप + नि | उपनिषत् | what evolves by sitting near and focused, a scripture |
श्रीमद्भगवद्गीता is replete with any number of examples of most thoughtful use of prefixes उपसर्गाः
Study of श्रीमद्भगवद्गीता can be thorough only with the study of significance of every उपसर्ग: in every word.
For example, there are these two द्वौ श्लोकौ in चतुर्थेऽध्याये which read -
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥4-17॥
कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः ।
स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥4-18॥
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥4-17॥
कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः ।
स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥4-18॥
The three words कर्म, विकर्म and अकर्म have to be only understood with and without the उपसर्ग:
We can study both these श्लोकौ in श्रीमद्भगवद्गीता along with the one at the opening, as the scope of study for this lesson.
We can study both these श्लोकौ in श्रीमद्भगवद्गीता along with the one at the opening, as the scope of study for this lesson.
१ संधिविच्छेदान् कृत्वा सामासिक-शब्दानां पदानि च दर्शयित्वा
उप-सर्गेण धातु-अर्थः बलात् अन्यत्र नीयते ।
प्रहार-आहार-संहार-विहार-परिहार-वत् ॥
कर्मणः हि अपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च वि-कर्मणः ।
अकर्मणः च बोद्धव्यं गहना कर्मणः गतिः ॥
कर्मणि अकर्म यः पश्येत् अकर्मणि च कर्म यः ।
स: बुद्धिमान् मनुष्येषु स: युक्तः कृत्स्न-कर्म-कृत् ॥
प्रहार-आहार-संहार-विहार-परिहार-वत् ॥
कर्मणः हि अपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च वि-कर्मणः ।
अकर्मणः च बोद्धव्यं गहना कर्मणः गतिः ॥
कर्मणि अकर्म यः पश्येत् अकर्मणि च कर्म यः ।
स: बुद्धिमान् मनुष्येषु स: युक्तः कृत्स्न-कर्म-कृत् ॥
२ समासानां विग्रहाः
अनुक्र | सामासिक शब्दः | मूल-शब्दः | पूर्वपदम् | उत्तरपदम् | समासस्य विग्रहः | समासस्य प्रकारः |
१ | उप-सर्गेण | उपसर्ग | उप | सर्ग | समीपे च सर्गः च | समाहार-द्वन्द्वः |
२ | धात्वर्थः | धात्वर्थ | धातु | अर्थ | धातुनः अर्थः | षष्ठी-तत्पुरुषः |
३ | प्रहार-आहार-संहार-विहार-परिहार-वत् | |||||
३.१ | प्रहाराहार: | प्रहाराहार | प्रहार | आहार | प्रहारः आहारः च | समाहार-द्वन्द्वः |
३.२ | प्रहाराहारसंहार: | प्रहाराहारसंहार | प्रहाराहार | संहार | प्रहाराहार: संहार: च | समाहार-द्वन्द्वः |
३.३ | प्रहाराहारसंहारविहार: | प्रहाराहारसंहारविहार | प्रहाराहारसंहार | विहार | प्रहाराहारसंहार: विहार: च | समाहार-द्वन्द्वः |
३.४ | प्रहाराहारसंहारविहारपरिहार: | प्रहाराहारसंहारविहारपरिहार | प्रहाराहारसंहारविहार | परिहार | प्रहाराहारसंहारविहार: परिहार: च | समाहार-द्वन्द्वः |
३.५ | प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत् | प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत् | प्रहाराहारसंहारविहारपरिहार | वत् | यथा प्रहाराहारसंहारविहारपरिहार: तथा | अव्ययीभावः |
४ | विकर्मणः | विकर्मन् | वि | कर्मन् | विपरीतं (वा विशेषं) कर्म | उपपद-तत्पुरुषः |
५ | अकर्मणः | अकर्मन् | अ | कर्मन् | न कर्म | नञ् तत्पुरुषः |
६ | कृत्स्नकर्मकृत् | |||||
६.१ | कृत्स्नकर्म | कृत्स्नकर्मन् | कृत्स्न | कर्मन् | कृत्स्नं कर्म | कर्मधारयः |
६.२ | कृत्स्नकर्मकृत् | कृत्स्नकर्मकृत् | कृत्स्नकर्म | कृत् | कृत्स्नकर्म करोति इति | उपपद-तत्पुरुषः |
३ संज्ञानां विश्लेषणम्
अनुक्र. | संज्ञा | मूलसंज्ञा | संज्ञायाः प्रकारः | लिङ्गम् | विभक्तिः | वचनम् | शब्दार्थः |
१ | उपसर्गेण | उपसर्ग | सामान्यनाम | पु. | तृतीया | एक. | by a prefix |
२ | समीपे | - | अव्ययम् | - | - | - | near |
३ | सर्गः | सर्ग | सामान्यनाम | पु. | प्रथमा | एक. | section |
४ | धातुनः | धातु | सामान्यनाम | पु. | षष्ठी | - | of verb |
५ | अर्थः | अर्थ | सामान्यनाम | पु. | - | - | meaning |
६ | बलात् | बल | सामान्यनाम | नपुं. | पञ्चमी | एक. | forcefully |
७ | अन्यत्र | - | अव्ययम् | - | - | - | to another place |
८ | प्रहारः | प्रहार | सामान्यनाम | पु. | प्रथमा | एक. | hit |
९ | आहारः | आहार | सामान्यनाम | पु. | प्रथमा | एक. | eating |
१० | संहार: | संहार | सामान्यनाम | पु. | प्रथमा | एक. | destruction |
११ | विहार: | विहार | सामान्यनाम | पु. | प्रथमा | एक. | enjoyment |
१२ | परिहार: | परिहार | सामान्यनाम | पु. | प्रथमा | एक. | total relief |
१३ | कर्मणः | कर्मन् | सामान्यनाम | नपुं. | षष्ठी | एक. | of action |
१४ | बोद्धव्यम् | बोद्धव्य | विशेषणम् | नपुं. | प्रथमा | एक. | to be understood |
१५ | गहना | गहना | विशेषणम् | स्त्री. | प्रथमा | एक. | deep, hard, complex |
१६ | गतिः | गति | सामान्यनाम | स्त्री. | प्रथमा | एक. | going, understanding |
१७ | कर्मणि | कर्मन् | सामान्यनाम | नपुं. | सप्तमी | एक. | in action |
१८ | कर्म | कर्मन् | सामान्यनाम | नपुं. | द्वितीया | एक. | action |
१९ | स: | तत् | सर्वनाम | पु. | प्रथमा | एक. | he |
२० | बुद्धिमान् | बुद्धिमत् | विशेषणम् | पु. | प्रथमा | एक. | intelligent, wise |
२१ | मनुष्येषु | मनुष्य | सामान्यनाम | पु. | सप्तमी | बहु. | among men |
२२ | युक्तः | युक्त | विशेषणम् | पु. | प्रथमा | एक. | eligible, in communion |
२३ | कृत्स्नम् | कृत्स्न | विशेषणम् | नपुं. | द्वितीया | एक. | all |
२४ | कृत् | कृत् | विशेषणम् | - | पु. स्त्री. नपुं. | एक. | doing |
४ क्रियापदानां धातुसाधितानां च विश्लेषणम्
अनुक्र. | क्रिया./ धा. सा. | प्रकारः | मूलधातुः | गणः | पदम् | पदमत्र | प्रयोजकः ? | प्रयोगः | कालः/अर्थः | पुरुषः | वचनम् | शब्दार्थः |
१ | नीयते | क्रिया. | नी | १ | उ | आ | न | कर्मणि | वर्त. | तृतीय | एक. | is taken |
२ | बोद्धव्यम् | ‘य’-प्रत्ययान्तं धा. सा.- वि. | बुध् | १ ४ | उ आ | - | न | कर्तरी | विध्यर्थ | - | एक. | to be understood |
३ | पश्येत् | क्रिया. | दृश् | १ | प. | न | कर्तरी | विध्यर्थ | तृतीय | एक. | should see | |
४ | कृत् | धा.सा.क्रि.वि. | कृ | ८ | उ | - | न | कर्तरी | वर्त. | - | एक. | doing |
५ वाक्यानां विश्लेषणम्
अनुक्र. | कर्तृपदस्य विस्तारः | कर्तृपदम् | कर्म १ | कर्म २ | पूरकानि | कथं | कदा | किमर्थं | कुत्र | इतराणि अव्ययानि | क्रिया/ धा. सा. | प्रधानम्/ गौणम् | संबन्धितः शब्दः | कस्मिन् वाक्ये |
१ | उपसर्गेण | धात्वर्थः | बलात् प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत् | अन्यत्र | नीयते | प्रधानम् | ||||||||
२ | कर्मणः | (कर्म) | हि | बोद्धव्यम् | प्रधानम् | |||||||||
३ | विकर्मणः | (कर्म) | अपि च | बोद्धव्यम् | प्रधानम् | |||||||||
४ | अकर्मणः | (कर्म) | च | बोद्धव्यम् | प्रधानम् | |||||||||
५ | कर्मणः | गतिः | गहना | (भवति) | प्रधानम् | |||||||||
६ | यः | अकर्म | कर्मणि | पश्येत् | गौणम् | स: | ८, ९ | |||||||
७ | यः | कर्म | अकर्मणि | च | (पश्येत्) | गौणम् | स: | ८, ९ | ||||||
८ | स: | मनुष्येषु बुद्धिमान् | (अस्ति) | प्रधानम् | ||||||||||
९ | स: | युक्तः कृत्स्न-कर्म-कृत् | (अस्ति) | प्रधानम् |
६ अन्वयः अनुवादः च
अनुक्र. | अन्वयः | अनुवादः |
१ | प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत् उपसर्गेण धात्वर्थः बलात् अन्यत्र नीयते । | As in प्रहाराहारसंहारविहारपरिहार prefixes carry forcefully the meaning of verbs somewhere else |
२ | कर्मणः (कर्म) बोद्धव्यम् हि । | Action (कर्म) is to be understood (of course) from actions |
३ | विकर्मणः (कर्म) अपि च बोद्धव्यम् । | Action (कर्म) is to be understood also from otherwise actions |
४ | अकर्मणः (कर्म) च बोद्धव्यम् । | Action (कर्म) is also to be understood from inaction |
५ | कर्मणः गतिः गहना (भवति) । | Happening of Action (कर्म) is hard and deep to understand |
६ | यः कर्मणि अकर्म पश्येत्, | who sees inaction in actions |
७ | यः अकर्मणि कर्म च (पश्येत्), | who sees action (कर्म) in inaction |
८ | स: मनुष्येषु बुद्धिमान् (अस्ति) । | He is intelligent among men |
९ | स: कृत्स्न-कर्म-कृत् युक्तः (अस्ति) । | He (even when) doing all actions is the eligible (in communion) (with the ultimate) |
७ टिप्पणयः
1 | Honestly, what I have tried to give as अनुवादः for the two द्वौ श्लोकौ in चतुर्थेऽध्याये is simple translation from dictionary-meaning of the words |
2 | The real deep meaning has to be “realised” by own deep thinking and deliberation. To my mind, most challenging part is to see action (कर्म) in inaction. |
3 | It seems that, everyone who has done some study of श्रीमद्भगवद्गीता gets motivated to write a book on श्रीमद्भगवद्गीता. By those motivations, we have thousands of commentaries already available on श्रीमद्भगवद्गीता. |
4 | Yet, I haven’t seen a book, which gives such word-by-word, clause-by-clause details, as I am ending up doing in this scheme of lessons for “Learning Sanskrit by fresh approach”. We have already done three out of 700 श्लोकाः in श्रीमद्भगवद्गीता. |
5 | I haven’t been giving स्वाध्याय exercises. Maybe, each one of us can start off doing word-by-word, clause-by-clause study of श्रीमद्भगवद्गीता as a long-lasting स्वाध्याय:. I already have some such study of my own uploaded at http://slezall.blogspot.com |
6 | For a start, there you have अन्वयाः of all 700 श्लोकाः in श्रीमद्भगवद्गीता. I have also done and uploaded some word-by-word studies of a few श्लोकाः of the first chapter both in English and Marathi. But it is all in the manner of my own स्वाध्याय:. You may as well disagree with some of my points. |
7 | Do your own स्वाध्याय: If you would that, that is what the objective of all these lessons also is. |
शुभमस्तु ।-o-O-o-
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