
Pages
- Home
- Hindu Scriptures Decoded
- UPNISHAD
- LEARN GITA
- IMPORTANT SANSKRIT LINKS
- SANSKRIT GRAMMER
- SIMPLE SANSKRIT
- LEARN SANSKRIT
- SANSKRIT STUDY
- DONATE
- HINDUISM SANSKRIT
- DOWNLOAD SANSKRIT LESSONS
- LEARN SANSKRIT
- AYURVEDA IN HINDI
- SANSKRITUM
- Sanskrit Grammer
- SHANKHNAD against corrupt politicians
- आयुर्वेद
- Tools
- Sri Ramcharitmanas
- Ramcharitmanas in English
- Gita
Monday, June 29, 2015
Knight's tour

Theory of Spider net and Indrajal similarity
*****************************************

Hinduism origin of China
There is direct evidence of that there were indeed Hindu temples in China as early as the 6th century AD.
Poorly written/formatted tamil wordings on these carvings prove that those were done by a non-native tamilian in China.
Saturday, June 13, 2015
गायत्री मन्त्र /Gayatri Mantra and Kundalini

गायत्री मन्त्र जप /उच्चारण मात्र से स्वचालित प्रक्रिया द्वारा शरीर की 24 ग्रन्थियों (चक्रों) के जागरण, स्फुरण का रहस्य~
(गायत्री के ग्रन्थि योग का परिचय)
1. मनुष्य की देह में जो चक्र और ग्रन्थियाँ गुप्त रूप से रहती हैं- वे चक्र और ग्रन्थियाँ मनुष्य के शुद्ध ह्रदय में प्रचण्ड प्रेरणा को प्रदान करती हैं। उन समस्त चक्र और ग्रन्थियों को जाग्रत करके साधना में रत मनुष्य कुण्डलिनी का साक्षात्कार करता है। वह ही ग्रन्थि योग कहलाता है।
2. गायत्री के अक्षरों का गुम्फन ऐसा है जिससे समस्त गुह्म ग्रन्थियाँ जाग्रत हो जाती हैं। जाग्रत हुई ये सूक्ष्म ग्रन्थियाँ साधक के मन में निस्सन्देह शीघ्र ही दिव्य शक्तियों को पैदा कर देती हैं।
3. मनुष्यों के अन्तःकरण में गायत्री मन्त्र के अक्षरों से सूक्ष्म भूत चौबीस शक्तियाँ प्रकट होती हैं।
4. मनुष्य के शरीर में अनेकों सूक्ष्म ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनमें से छै प्रधान ग्रन्थियों/चक्रों का सम्बन्ध कुण्डलिनी-शक्ति जागरण से है। यथा शून्य चक्र, आज्ञा चक्र, विशुद्धारष्य चक्र, अनाहत चक्र, मणिपूरक चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र एवं मूलाधार चक्र। उनके अतिरिक्त और भी अनेकों महत्वपूर्ण ग्रन्थियाँ हैं, जिनका जागरण होने से ऐसी शक्तियों की प्राप्ति होती है, जो जीवनोन्नति के लिए बहुत ही उपयोगी हैं।
5. हमें ज्ञात है कि विभिन्न अक्षरों का उच्चारण मुख के विभिन्न स्थानों से होता है- कुछ का कंठ से, तालू से, होठों एवं दाँतों आदि स्थानों से। जिन स्थानों से गायत्री के विभिन्न शब्दों अक्षरों का मूल उद्गम है वे स्थान भिन्न हैं। शरीर के अन्तर्गत विविध स्थानों के स्नायु समूह तथा नाडी तन्तुओं का जब स्फुरण होता है तब उस शब्द का पूर्व रूप बनता है जो मुख में जाकर उसके किसी भाग से प्रस्फुटित होता है।
6. गायत्री के 24 अक्षर इसी प्रकार के हैं, जिनका उद्गम स्थान इन 24 ग्रन्थियों पर है। जब हम गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते हैं तो क्रमशः इन सभी ग्रन्थियों पर आघात पहुँचता है और वे धीरे-धीरे सुप्त अवस्था का परित्याग करके जागृति की ओर चलती हैं। हारमोनियम बजाते समय जिस परदे/ बटन पर हाथ रखते हैं, वह स्वर बोलने लगता है। इसी प्रकार इन 24 अक्षरों के उच्चारण से वे 24 ग्रन्थियाँ झंकृत होने लगती हैं। इस झंकार के साथ उनमें स्वयंमेव (Automatically) जागृति की विद्युत दौड़ती है। फलस्वरूप धीरे-धीरे साधक में अनेकों विशेषतायें पैदा होती जाती हैं और उसे अनेकों प्रकार के भौतिक तथा आध्यात्मिक लाभ मिलने लगते हैं।
7. गायत्री मन्त्र के चौबीसों अक्षर अपने-अपने स्थान पर अवस्थिति उन शक्तियों को जगाते हैं - जिनके फलस्वरूप विविध प्रकार के लाभ होते हैं। इतने महान लाभों के लिए कोई पृथक क्रिया नहीं करनी पड़ती, केवल गायत्री मन्त्र के शब्दोच्चारण मात्र से स्वयंमेव ग्रन्थि जागरण होता चलता है और साधक से अपने आप ग्रन्थि योग की साधना होती चलती है।
8. सम्भवतः यही कारण है कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों में, प्रत्येक धार्मिक क्रिया में, पूजा-पाठ में, दैनिक सन्ध्या उपासना में, विभिन्न संस्कारों में- जब भी हो सके अधिकाधिक एवं बार-बार गायत्री मन्त्र का उच्चारण / पाठ / जप करने का विधि-विधान सम्मिलित किया गया है।


By DR SK SHUKLA
Friday, June 5, 2015
Yoga and kundalini power
वायु का संबंध आयु से अनिरुद्ध जोशी ‘शतायु’ कछुए की साँस लेने और छोड़ने की गति इनसानों से
कहीं अधिक दीर्घ है। व्हेल मछली की उम्र का राज
भी यही है। बड़ और पीपल के वृक्ष की आयु का राज
भी यही है।
वायु को योग में प्राण कहते हैं। प्राचीन ऋषि वायु के इस रहस्य को समझते थे तभी तो वे
कुंभक लगाकर हिमालय की गुफा में वर्षों तक बैठे रहते थे।
श्वास को लेने और छोड़ने के दरमियान घंटों का समय
प्राणायाम के अभ्यास से ही संभव हो पाता है। शरीर में दूषित वायु के होने की स्थिति में भी उम्र
क्षीण होती है और रोगों की उत्पत्ति होती है। पेट में
पड़ा भोजन दूषित हो जाता है, जल भी दूषित हो जाता है
तो फिर वायु क्यों नहीं। यदि आप लगातार दूषित वायु
ही ग्रहण कर रहे हैं तो समझो कि समय से पहले ही रोग
और मौत के निकट जा रहे हैं।
हठप्रदीपिका में इसी प्राणरूप वायु के संबंध में कहा गया है
कि जब तक यह वायु चंचल या अस्थिर रहती है, जब तक
मन और शरीर भी चंचल रहता है। इस प्राण के स्थिर होने
से ही स्थितप्रज्ञ अर्थात मोक्ष की प्राप्ति संभव
हो पाती है। जब तक वायु इस शरीर में है, तभी तक जीवन
भी है, अतएव इसको निकलने न देकर कुंभक का अभ्यास बढ़ाना चाहिए, जिससे जीवन बना रहे और जीवन में
स्थिरता बनी रहे।
असंयमित श्वास के कारण :
बाल्यावस्था से ही व्यक्ति असावधानीपूर्ण और अराजक
श्वास लेने और छोड़ने की आदत के कारण ही अनेक
मनोभावों से ग्रसित हो जाता है। जब श्वास चंचल और
अराजक होगी तो चित्त के भी अराजक होने से आयु
का भी क्षय शीघ्रता से होता रहता है। फिर व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता है काम, क्रोध, मद,
लोभ, व्यसन, चिंता, व्यग्रता, नकारात्मता और
भावुकता के रोग से ग्रस्त होता जाता है। उक्त रोग
व्यक्ति की श्वास को पूरी तरह तोड़कर शरीर स्थित
वायु को दूषित करते जाते हैं जिसके कारण शरीर
का शीघ्रता से क्षय होने लगता है।
कुंभक का अभ्यास करें :
हठयोगियों ने विचार किया कि यदि सावधानी से
धीरे-धीरे श्वास लेने व छोड़ने और बाद में रोकने
का भी अभ्यास बनाया जाए तो परिणामस्वरूप चित्त में
स्थिरता आएगी। श्वसन-क्रिया जितनी मंद और सूक्ष्म
होगी उतना ही मंद जीवन क्रिया के क्षय होने का क्रम
होगा। यही कारण है कि श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण
करने तथा पर्याप्त समय तक उसको रोक रखने (कुंभक) से
आयु के भी बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। इसी कारण योग
में कुंभक या प्राणायाम का सर्वाधिक महत्व माना गया है।
सावधानी :
आंतरिक कुंभक अर्थात श्वास को अंदर खींचकर पेट
या अन्य स्थान में रोककर रखने से पूर्व शरीरस्थ
नाड़ियों में स्थित दूषित वायु को निकालने के लिए
बाहरी कुंभक का अभ्यास करना आवश्यक है।
अतः सभी नाड़ियों सहित शरीर की शुद्धि के बाद ही कुंभक का अभ्यास करना चाहिए। वैसे तो प्राणायाम अनुलोम-विलोम के
भी नाड़ियों की शुद्धि होकर शरीर शुद्ध होता है और
साथ-साथ अनेक प्रकार के रोग भी दूर होते हैं, किन्तु
किसी प्रकार की गलती इस अभ्यास में हुई तो अनेक
प्रकार के रोगों के उत्पन्न होने की संभावना भी रहती है।
अतः उचित रीति से ही प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
प्राणायाम का रहस्य :
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना ये तीन नाड़ियाँ प्रमुख हैं।
प्राणायम के लगातार अभ्यास से ये नाड़ियाँ शुद्ध होकर
जब सक्रिय होती हैं तो व्यक्ति के शरीर में
किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता और आयु प्रबल
हो जाती है। मन में किसी भी प्रकार की चंचलता नहीं रहने से स्थिर मन शक्तिशाली होकर
धारणा सिद्ध हो जाती है अर्थात ऐसे व्यक्ति की सोच
फलित हो जाती है। यदि लगातार इसका अभ्यास
बढ़ता रहा तो व्यक्ति सिद्ध हो जाता है।
From matrabhumi.wordpress.com
Significance of number 108, 7 ,9
- There are 12 zodiac signs and 9 planets. As the 9 planets move through the 12 signs, their positions affect us either negatively or positively. Chanting the Om Namah Shivaya 108 times (12 x 9 = 108 duh!), nullifies any negative effects and enhances positive effects of the planets on us!
- Here are 54 letters in Sanskrit alphabets and Each has masculine and feminine, i.e. shiva and shakti 54 * 2 = 108
- Time: Some say there are 108 feelings, with 36 related to the past, 36 related to the present, and 36 related to the future.
- Astrology: There are 12 constellations, and 9 arc segments called namshas or chandrakalas. 9 times 12 equals 108. Chandra is moon, and kalas are the divisions within a whole
- The diameter of the sun is 108 times the diameter of the Earth.
- 108 represents (1+0+8) = 9, where 9 represents 9 tattvas
- Nine Tattvas (Principles):
1. Jiva – soul or living being (Consciousness)
2. Ajiva – non-living substances
3. Asrava – cause of the influx of karma
4. Bandh – bondage of karma
5. Punya – virtue
6. Paap – sin
7. Samvara – arrest of the influx of karma
8. Nirjara – exhaustion of the accumulated karma
9. Moksha – total liberation from karma
- Followers use 108 beads in their malas. They implement the following formula:
6 x 3 x 2 x3 = 108
6 senses [sight, sound, smell, taste, touch, thought]
3 aspects of time [past, present, future]
2 condition of heart [pure or impure]
3 possibilties of sentiment [like, dislike, indifference]
- Mathematically speaking number 9 stands between 0-8 (i.e. 0 to 8 , total numbers are 9). Eight represents completeness or totality because it includes the 4 cardinal directions and the 4 ordinal directions
So number 108 represents beginning- nothingness- fulfillment. i.e. nothingness between the beginning and the end. Or we can say 1 stands for beginning and 8 stands for infinity and eternity.
- Mahabharat have 18पर्व (PARV)Chapters. It Mean = 1+8 = 9 Completeness.
- Mehmood Gaznavi attached 17 Times and next he Taken “Shayamantaka”. It mean 17+1=18(1+8=9)
- Shakuni Rolled the dice the 17th Time and said ” Lo i have won”. it means on Next rolled Pandavas are on the Road. The completeness.
The power of Number ” 7 “
- RAMAYAN have “7” कांड.
- Krishna’s Dwarika consist of 7 Islands(द्वीप )-
- One could Split Light into 7 “Colors” and One Could combine the Seven Colors in One Light.
- According to “YOG”Vidya – 7 “Chakras” in our Body.
- India Classic Music – 7 “swar” स्वर
- In English 7 “SWAR” – 1.DO
- 2.RE
- 3.MI
- 4.FA
- 5.SOL
- 6.LA
- 7.TI
- If you play all Swar at same moment your will get OUTPUT of Sound ” OM”.
- Broad form of Energy-
- Seven Rivers called “सप्तसिंधु “.
- Seven Sages called ” सप्त ऋषि
- Vedic Calenders have ” 7″ Days Phase.
- विवाह में 7 फेरे
16 श्रंगार और उनके महत्तव ( १+६ =७ )
1) बिन्दी – सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिन्दुर से अपने ललाट पर लाल बिन्दी जरूर लगाती है और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
2) -सिन्दुर – सिन्दुर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नि की मांग में सिंन्दुर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।
-नथ – विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने के बाद में देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है।
9) -कर्ण फूल – कान में जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है।
10) -हार – गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबध्दता का प्रतीक माना जाता है। वधू के गले में वर व्दारा मंगलसूत्र से उसके विवाहित होने का संकेत मिलता है।
11) -बाजूबन्द – कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चान्दी का होता है। यह बांहो में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द कहा जाता है।
12) -कंगण और चूडिय़ाँ – हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास अपनी
बडी़ बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगण देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने दिए थे। पारम्परिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से भरी रहनी चाहिए।
-13) अंगूठी – शादी के पहले सगाई की रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने की परम्परा बहुत पूरानी है। अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है।
14) -कमरबन्द – कमरबन्द कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबन्द इस बात का प्रतीक कि नववधू अब अपने नए घर की स्वामिनी है। कमरबन्द में प्राय: औरतें चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है।
15) -बिछुआ – पैरें के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। पारम्परिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के अलावा स्त्रियां कनिष्का को छोडकर तीनों अंगूलियों में बिछुआ पहनती है।
16) -पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुंघरूओं की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है।