Sunday, March 13, 2016

मंत्र शक्ति का वैज्ञानिक विशलेषण

मंत्र शक्ति का वैज्ञानिक विशलेषण

मंत्र ध्वनि-विज्ञान का सूक्ष्मतम विज्ञान है मंत्र-शरीर के अन्दर से सूक्ष्म ध्वनि को विशिष्ट तरंगों में बदल कर ब्रह्मांड में प्र...वाहित करने की क्रिया है जिससे बड़े-बड़े कार्य किये जा सकते हैं… प्रत्येक अक्षर का विशेष महत्व और विशेष अर्थ होता है.. प्रत्येक अक्षर के उच्चारण में चाहे वो वाचिक, उपांसू या मानसिक हो विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है तथा शरीर में एवं विशेष अंगो, नाड़ियों में विशेष प्रकार का कम्पन पैदा करती है । जिससे शरीर से विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगे निकलती हैं, जो वातावरण-आकाशीय तरंगो से संयोग करके विशेष प्रकार की क्रिया करती है। विभिन्न अक्षर (स्वर-व्यंजन) एक प्रकार के बीज मंत्र हैं । विभिन्न अक्षरों के संयोग से विशेष बीज मंत्र तैयार होते हैं जो एक विशेष प्रकार का प्रभाव डालते हैं, परन्तु जैसे अंकुर उत्पन्न करने में समर्थ सारी शक्ति अपने में रखते हुये भी धान, जौ, गेहूँ अदि संस्कार के अभाव में अंकुर उत्पन्न नहीं कर सकते वैसे ही मंत्र-यज्ञ आदि कर्म भी सम्पूर्ण फलजनित शक्ति से सम्पन्न होने पर भी यदि ठीक-ठीक से अनुष्ठित न किये जाय तो कदापि फलोत्पादक नहीं होते हैं ।
घर्षण के नियमों से सभी लोग भलीभातिं परिचित होगें, घर्षण से ऊर्जा आदि पैदा होती है, मंत्रों के जप से तथा श्वास के शरीर में आवागमन से, विशेष अक्षरों के अनुसार विशेष स्थानों की नाड़ियों में कम्पन(घर्षण) पैदा होने से विशेष प्रकार का विद्युत प्रवाह पैदा होता हैं, जो साधक के ध्यान लगाने से एकत्रित होता हैं तथा मंत्रों के अर्थ (साधक को अर्थ ध्यान रखते हुए उसी भाव से ध्यान एकाग्र करना आवश्यक होता है) के आधार पर ब्रह्मांड में उपस्थित अपने ही अनुकूल उर्जा से संपर्क करके तदानुसार प्रभाव पैदा होता हैं, रेडियो, टी०वी० या अन्य विद्युत उपकरणों में आजकल रिमोट कन्ट्रोल का सामान्य रूप से प्रयोग देखा जा सकता है, इसका सिद्धान्त भी वही है जो मंत्रों के जप से निकलने वाली सूक्ष्म ऊर्जा भी ब्रह्मांड की ऊर्जा से संयोंग करके वातावरण पर बिशेष प्रभाव डालती है हमारे ऋषि-मुनियों ने दीर्घकाल तक अक्षरों,मत्राओं, स्वरों पर अध्ययन प्रयोग, अनुसंधान करके उनकी शक्तियों को पहचाना जिनका वर्णन वेदों में किया है इन्ही मंत्र शक्तियों से आश्चर्यजनक कार्य होते हैं, जो अविश्वसनीय से लगते हैं, यद्यपि समय एवं सभ्यता तथा सांस्कृतिक बदलाव के कारण उनके वर्णनों में कुछ अपभ्रंस शामिल हो जाने के वावजूद भी उनमें अभी भी काफी वैज्ञानिक अंश ऊपलब्ध है, बस थोड़ा सा उनके वास्तविक सन्दर्भ को दृष्टिगत रखते हुए प्रयोग करके प्रमाणित करने की आवश्यकता है ।

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