संस्कृत ही हिमालय से लेकर समुद्रपर्यन्त सम्पूर्ण भारत की वास्तविक भाषा है, इसमें प्रमाण – प्राचीन काल में संस्कृत का एक और नाम प्रचलित था – भारती। भारती का अर्थ है - भारत की भाषा। भारत के सबसे प्राचीन धर्मशास्त्र महामुनि गौतम प्रणीत सामवेदीय धर्म सूत्र की टीका करते हुए एक बहुत ही प्राचीन टीकाकार हरदत्ताचार्य ने संस्कृत के लिये इस शब्द का प्रयोग किया है – “वाक् संस्कृता भारती” (गौतम धर्म सूत्र २.२.१२)। भा अर्थात् ज्ञान के प्रकाश की प्राप्ति में सदैव रत रहने वाले इस महान् भारत देश की भाषा होने के कारण ही इसे “भारती” कहते थे। ये भारत के किसी एक प्रदेश विशेष की नहीं, अपितु जहां तक भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति का प्रचार था, वहां तक के समस्त भूभाग की महान् सांस्कृतिक भाषा थी। जहां तक भारतीय वैदिक संस्कृति का प्रचार था, उस समस्त भूभाग पर देववाणी संस्कृत भाषा का भी प्रचार था। इसके प्रमाण हमें वियतनाम, इण्डोनेशिया तथा सुदूर पूर्व में फिलिपींस तक में खुदाई से निकले संस्कृत के अति प्राचीन शिलालेखों से ज्ञात होता है। वास्तविकता यह है कि संस्कृत से ही हमारी संस्कृति है और भारती से ही हमारा भारत है। संस्कृत न रहे, तो हमारी संस्कृति न बचेगी; भारती न रहेगी, तो भारत भी न बचेगा। यह जिस दिन इस देश के वासियों को यह बात समझ में आ जायेगा, उस दिन इस देश का विकास जापान तथा चीन जैसे अपने संस्कृति व भाषा के महत्त्व को समझने वाले देशों की तरह होने लग जायेगा, और वह विकास आर्थिक और वैज्ञानिक तो होगा ही, साथ में आध्यात्मिक भी होगा, जिसकी प्यास अब विश्व के आर्थिक व वैज्ञानिक रूप से विकसित राष्ट्रों में जाग उठी है। इस अन्तरात्मा की गहरी प्यास को बुझाने का कार्य भी यह भारतीय संस्कृति द्वारा दिया हुआ योग और वेदान्त का उच्च आध्यात्मिक ज्ञान ही कर सकता है॥ उत्तिष्ठ भारत... जागो, भारत! जागो...
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