Showing posts with label प्राणायाम.pranayam. Show all posts
Showing posts with label प्राणायाम.pranayam. Show all posts

Wednesday, September 9, 2015

प्राणायाम.,Pranayam

 
अष्टांग योग का चतुर्थ अंग है प्राणायाम.
'प्राण योग' की विवेचना एवं 'प्राण शक्ति' को बढ़ाने के लिए सबसे सुगम प्राणाकर्षण (प्राणायाम) क्रिया~

(A) प्राण योग :
1. 'प्राण' को जीवनी शक्ति भी कहते हैं। प्राण की प्रमुखता होने के कारण ही प्राणी शब्द बना है । जिस प्राणी में प्राण की जितनी अधिक मात्रा है- वह उतना ही श्रेष्ठ, पराक्रमी, उन्नत एवं महान होता है।

2. जिसमें प्राण की मात्रा जितनी कम है- वह उतना ही निर्बल, निकम्मा, आलसी एवं निम्न स्तर का होगा । प्राणवान की प्रमुख पहचान उसकी 'तेजस्विता' है। गायत्री मन्त्र में इसका संकेत 'भर्ग' शब्द से मिलता है । भर्ग 'तेज' को कहते हैं।

3. प्राण की वृद्धि के लिए 'प्राणायाम' की साधना सर्वश्रेष्ठ है। सात्विक और नियमित आहार, व्यवस्थित दिनचर्या, निश्चिंत मन, प्रसन्न चित्त एवं ब्रह्मचर्य-सभी प्राण शक्ति को बढ़ाते हैं ।

4. प्राण शक्ति को बढ़ाने का अर्थ है- उस दिव्य तत्व को अपने अन्दर भरना जिसके द्वारा मनुष्य की शक्तियाँ अनेक दिशाओं में विकसित होती हैं । इसके द्वारा आयु को भी बढ़ाया जा सकता है। प्राणवान व्यक्तियों की संतान भी सुन्दर, स्वस्थ, तेजवान, कर्मशील एवं दीर्घ-जीवी होती है।

(B) प्राण शक्ति को बढ़ाने के लिए सबसे सुगम प्राणाकर्षण क्रिया~

1. इसका अभ्यास करने के लिए एकान्त स्थान में समतल भूमि पर नरम बिछौना बिछा कर पीठ के बल, मुँह ऊपर रखते हुये, इस प्रकार लेट जाएँ जिससे पैर, कमर, छाती, सिर सब एक सीध में रहें।

2. दोनों हाथ सूर्य चक्र पर रहें (आमाशय का वह स्थान जहाँ पसलियाँ और पेट मिलता है) और मुँह बन्द रखें। शरीर बिल्कुल ढीला छोड़ दें। कुछ देर शिथिलता की भावना करने पर शरीर बिल्कुल ढीला पड़ जाएगा।

3. अब धीरे-धीरे 'नाक द्वारा' साँस खींचना आरम्भ करें और दृढ इच्छा के साथ भावना करें कि 'विश्वव्यापी महान प्राण-भण्डार' में से मैं स्वच्छ प्राण साँस के साथ खींच रहा हूँ और वह प्राण मेरे रक्त प्रवाह तथा समस्त नाडी तन्तुओं में प्रवाहित होता हुआ 'सूर्य चक्र' में एकत्रित हो रहा है।

4. इस भावना को कल्पना लोक में इतनी दृढ़ता के साथ उतारें कि 'प्राण शक्ति' की बिजली जैसी किरणें नासिका द्वारा देह में घुसती हुई चित्रवत दीखने लगें और अपना रक्त का दौरा एवं नाडी समूह तस्वीर की तरह दिखें तथा उसमें प्राण प्रवाह बहता हुआ नजर आवे। भावना की जितनी अधिकता होगी उतनी ही अधिक मात्रा में तुम प्राण खींच सकोगे।

5. फेफड़ों को वायु से अच्छी तरह भर लो और 5-10 सेकेण्ड तक उसे भीतर रोके रहो। साँस रोके रहने के समय अपने अन्दर प्रचुर मात्रा में प्राण भरा हुआ अनुभव करना चाहिए। अब वायु को 'मुँह द्वारा' धीरे-धीरे बाहर निकालो। निकालते समय ऐसा अनुभव करो कि शरीर के सारे दोष, रोग, विष इसके द्वारा निकाल बाहर किये जा रहे हैं। 5-10 सेकेण्ड तक बिना हवा के रहो और फिर उसी प्रकार प्राणाकर्षण प्राणायाम करना आरम्भ कर दो।

6. ध्यान रहे इस प्राणायाम का मूल तत्व साँस खींचने- छोड़ने में नहीं वरन् आकर्षण की उस भावना में है जिसके अनुसार अपने शरीर में प्राण का प्रवेश होता हुआ चित्रवत दिखाई देने लगता है।

7. श्वास द्वारा खींचा हुआ प्राण सूर्य चक्र में जमा होता जा रहा है इसकी विशेष रूप से भावना करो। यदि मुँह द्वारा साँस छोड़ते समय आकर्षित प्राण को छोड़ने की भी कल्पना करने लगे तो वह सारी क्रिया व्यर्थ हो जाएेगी और कोई भी लाभ नहीं मिलेगा।

8. ठीक तरह से प्राणाकर्षण करने पर सूर्य चक्र जागृत होने लगता है - छोटे सूर्य चक्र स्थान पर सूर्य के समान एक छोटा- सा प्रकाश बिन्दु मानस नेत्रों से दीखने लगता है। अभ्यास बढ़ने पर वह साफ, स्वच्छ, बड़ा और प्रकाशवान होता जाता है। जिनका अभ्यास बढ़ा-चढ़ा है- उन्हें आँखें बन्द करते ही अपना सूर्य चक्र साक्षात् सूर्य की तरह तेजपूर्ण दिखाई देने लगता है।

9. इसकी शक्ति से कठिन कार्यों में भी अद्भुत सफलता प्राप्त होती है। अभ्यास पूरा करके उठ बैठो-शान्तिपूर्वक बैठ जाओ, सात्विक जलपान करो, एकदम से किसी कठिन काम में जुट जाना, स्नान,भोजन या मैथुन करना निषिद्ध है।

. संतुलन के प्राणायाम: इस
प्राणायाम में नाड़ी शोधन
सर्वश्रेष्ठ प्राणायाम
माना जाता है। इसमें बाएं और दाएं
नासिक में बारी-बारी से एक के बाद
दूसरे से सांस लेने और छोड़ने
की प्रक्रिया होती है। इसमें इड़ा और
पिंगला दोनों प्रभावित होती हैं। शरीर
और मन दोनों के असंतुलन को इसके
अभ्यास से दूर किया जा सकता है।......श्री राम शर्मा आचार्य ..शांति कुञ्ज