Wednesday, May 4, 2016

Som rus v/s sura (wine)जानिये सोमरस और सुरापान में अंतर

कई पश्चमी विद्वानों की तरह भारतीय विद्वानों की ये आम धारणा है कि सोम रस एक तरह का नशीला पदार्थ होता है. ऐसी ही धारणा डॉ.अम्बेडकर की भी थी, डॉ.अम्बेडकर अपनी पुस्तक रेवोलुशन एंड काउंटर रेवोलुशन इन एशिएन्ट  इंडिया में सोम को वाइन कहते है. लेकिन शायद वह वेदों में सोम का अर्थ समझ नहीं पाए,या फिर पौराणिक इन्द्र और सोम की कहानियों के चक्कर में सोम को शराब समझ बैठे.

सोम का वैदिक वांग्मय मे काफी विशाल अर्थ है, सोम को शराब समझने वालो को शतपत के निम्न कथन पर दृष्टी डालनी चाहिए जो कि शराब ओर सोम पर अंतर को स्पष्ट करता है.
शतपत (5:12 ) में आया है :- सोम अमृत है ओर सुरा (शराब) विष है ..
ऋग्वेद में आया है :-” हृत्सु पीतासो मुध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम् ।।
अर्थात सुरापान करने या नशीला पदार्थ पीने वाला अक्सर उत्पाद मचाते है, जबकि सोम के लिए ऐसा नहीं कहा है.

वास्तव मे सोम ओर शराब में उतना ही अंतर है जितना की डालडा या गाय के घी में होता है.
निरुक्त शास्त्र में आया है-
"औषधि: सोम सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति (निरूकित११-२-२)"
अर्थात सोम एक औषधि है जिसको कूट पीस कर इसका रस निकलते है. लेकिन फिर भी सोम को केवल औषधि या कोई लता विशेष समझना इसके अर्थ को पंगु बना देता है.
सोम का अर्थ बहुत व्यापक है जिसमें से कुछ यहाँ बताने का प्रयास किया है :-
कौषितिकी ब्राह्मणों उपनिषद् में सोम रस का अर्थ चंद्रमा का रस अर्थात चंद्रमा से आने वाला शीतल प्रकाश जिसे पाकर औषधियां पुष्ट होती है,
शतपत में ऐश्वर्य को सोम कहा है -“श्री वै सोम “(श॰4/1/39) अर्थात ऐश्वर्य सोम है.
शतपत में ही अन्न को भी सोम कहा है -” अन्नं वै सोमः “(श ॰ 2/9/18) अर्थात इस अन्न के पाचन से जो शक्ति उत्पन्न होती है वो सोम है.
कोषितिकी मे भी यही कहा है :-“अन्न सोमः”(कौषितिकी9/6)
ब्रह्मचर्य पालन द्वारा वीर्य रक्षा से उत्पन्न तेज को सोम कहा है.
शतपत में आया है-
“रेतो वै सोमः”(श ॰ 1/9/2/6) अर्थात ब्रहमचर्य से उत्पन्न तेज (रेत) सोम है .
कौषितिकी मे भी यही लिखा है :-“रेतः सोम “(कौ॰13/7)
वेदों के शब्दकोष निघुंट मे सोम के अंनेक पर्यायवाची में एक वाक् है ,वाक् श्रृष्टि रचना के लिए ईश्वर द्वारा किया गया नाद या ब्रह्मनाद था .. अर्थात सोम रस का अर्थ प्रणव या उद्गीत की उपासना करना हुआ. वेदों ओर वैदिक शास्त्रों मे सोम को ईश्वरीय उपासना के रूप मे बताया है, जिनमें कुछ कथन यहाँ उद्रत किये है :-

तैतरिय उपनिषद् में ईश्वरीय उपासना को सोम बताया है, ऋग्वेद (10/85/3) में आया है :-
” सोमं मन्यते पपिवान्सत्सम्पिषन्त्योषधिम्|
सोमं यं ब्राह्मणो विदुर्न तस्याश्राति कश्चन||”
अर्थात पान करने वाला सोम उसी को मानता है जो औषधि को पीसते ओर कूटते है , उसका रस पान करते है ,परन्तु जिस सोम को ब्रह्म ,वेद को जानने वाले ,व ब्रह्मचारी लोग जानते है ,उसको मुख द्वारा कोई खा नहीं सकता है ,उस अध्यात्मय सोम को तेज ,दीर्घ आयु ,और आनंद को वे स्वयं ही आनन्द , पुत्र, अमृत रूप में प्राप्त करते हैं.

ऋग्वेद (8/48/3) में आया है :-
”अपाम सोमममृता अभूमागन्मु ज्योतिरविदाम् देवान्|
कि नूनमस्कान्कृणवदराति: किमु धृर्तिरमृत मर्त्यस्य।।”
अर्थात हमने सोमपान कर लिया है, हम अमृत हो गये है, हमने दिव्य ज्योति को पा लिया है, अब कोई शत्रु हमारा क्या करेगा.

ऋग्वेद(8/92/6) में आया है :-
”अस्य पीत्वा मदानां देवो देवस्यौजसा विश्वाभि भुवना भुवति”
अर्थात परमात्मा के संबध मे सोम का पान कर के साधक की आत्मा ओज पराक्रम युक्त हो जाती है,वह सांसारिक द्वंदों से ऊपर उठ जाता है.

गौपथ में सोम को वेद ज्ञान बताया है :-
गोपथ*(पू.२/९) वेदानां दुह्म भृग्वंगिरस:सोमपान मन्यन्ते| सोमात्मकोयं वेद:|तद्प्येतद् ऋचोकं सोम मन्यते पपिवान इति|
वेदो से प्राप्त करने योग्य ज्ञान को विद्वान भृगु या तपस्वी वेदवाणी के धारक ज्ञानी अंगिरस जन सोमपान करना जानते है.
वेद ही सोम रूप है.

सोम का एक विस्तृत अर्थ ऋग्वेद के निम्न मन्त्र मे आता है :-
” अयं स यो वरिमाणं पृथिव्या वर्ष्माणं दिवो अकृणोदयं स:
अयं पीयूषं तिसृपु प्रवत्सु सोमो दाधारोर्वन्तरिक्षम”(ऋग्वेद 6/47/4)
अर्थात व्यापक सोम का वर्णन, वह सोम सबका उत्पादक, सबका प्रेरक पदार्थ व् बल है, जो पृथ्वी को श्रेष्ठ बनाता है, जो सूर्य आकाश एवम् समस्त लोको को नियंत्रण मे करने वाला है, ये विशाल अन्तरिक्ष में जल एवम् वायु तत्व को धारण किये है.

अतः उपरोक्त कथनों से स्पष्ट है कि सोम का व्यापक अर्थ है उसे केवल शराब या लता बताना सोम के अर्थ को पंगु करना है. चूंकि डॉ अम्बेडकर अंग्रेजी भाष्यकारो के आधार पर अपना कथन उदृत करते हैं, तो ऐसी गलती होना स्वाभिक है जैसे कि वह कहते है “यदि यह कहा जाये कि मै संस्कृत का पंडित नही हूँ तो मै मानने को तैयार हूँ . परन्तु संस्कृत का पंडित नहीं होने से मै इस विषय में लिख क्यूँ नही सकता हूँ? संस्कृत का बहुत थोडा अंश जो अंग्रेजी भाषा मे उपलब्ध नही है, इसलिए संस्कृत न जानना मुझे इस विषय पर लिखने से अनधिकारी नही ठहरया जा सकता है, अंग्रेजी अनुवादों के १५ साल अध्ययन करने के बाद मुझे ये अधिकार प्राप्त है ,(शुद्रो की खोज प्राक्कथ पृ॰ २)

अतः स्पष्ट है कि अंग्रेजी टीकाओ के चलते अम्बेडकर जी ने ऐसा लिखा हो लेकिन वो आर्य समाज से भी प्रभावित थे जिसके फल स्वरूप वो कई वर्षो तक नमस्ते शब्द का भी प्रयोग करते रहे थे, लेकिन फिर भी अंग्रेजी भाष्य से पुस्तके लिखना चिंता का विषय है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया.

लेकिन अम्बेडकर जी के अलावा अन्य भारतीय विद्वानों ओर वैदिक विद्वानों द्वारा सोम को लता या नशीला पैय बताना इस बात का बोधक है कि अंग्रेजो की मानसिक गुलामी अभी भी हावी है जो हमे उस बारे मे विस्तृत अनुसंधान नहीं करने देती है.


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