Wednesday, September 9, 2015

होम

प्रश्न '' होम से क्या उपकार होता है ?

उत्तर '' सब लोग जानते हैं की दुर्गंधयुक्त वायु और जल से रोग , रोग से प्राणियों को दुःख , और सुगन्धित वायु तथा जल आरोग्य , और रोग के नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है |

प्रश्न ,, चन्दनादि घिसकर किसी को लगावें , व घृतादि किसी को खाने को देवें तो बड़ा उपकार हो ? अग्नि में डाल के व्यर्थ नष्ट करना , बुद्धिमानो का काम नहीं ?

उत्तर,, जो तुम पदार्थ विद्या जानते , तो कभी ऐसी बातें ना कहते | क्योंकि किसी दृव्य का आभाव नहीं होता | देखो ! जँहा होम होता है ,वँहा से दूर देश में स्थित पुरुष के नसिका से सुगन्ध ग्रहण होता है, वैसे दुर्गन्ध का भी !इतने ही से समझ लो की अग्नि में डाला हुआ पदार्थ सूक्ष्म होके फ़ैल के , वायु के साथ दूर देश में जाकर, दुर्गन्ध की निवृति करता है |

प्रश्न ,, जब ऐसा ही है तो केशर ,कस्तूरी, सुगन्धित पुष्प और इत्र आदि के घर में रखने से सुगन्धित वायु होकर सुखकारक होगा ??

उत्तर ,, उस सुगन्ध का वह सामर्थ्य नहीं है की गृहस्थ वायु को निकाल कर ,शुध्द वायु को प्रवेश करा सके , क्योंकि भेदक -शक्ति नहीं है| और अग्नि का ही सामर्थ्य है की वायु और दुर्गन्धयुक्त पदार्थों को छिन्न भिन्न और हल्का करके , बाहर निकाल कर , पवित्र वायु को प्रवेश करा देता है !

प्रश्न '' तो मन्त्र पढ़ के होम करने का क्या प्रयोजन है ?

उत्तर '' मन्त्रों में वह व्याख्यान है की जिससे होम करने के लाभ विदित हो जावें और मन्त्रों की आवृति होने से कंठस्थ्य रहें ! वेद पुस्तकों के पठन पाठन और रक्षा भी होवे ! मन्त्र उच्चारण में सूक्ष्म दिव्य शक्ति निहित होती है जो वायुभूत होकर आकाश में फैलती है तथा वायु प्रदूषण,और वैचारिक प्रदूषण को दूर करती है।

प्रश्न '' क्या इस होम करने के बिना पाप भी होता है ?

उत्तर'' हाँ क्योंकी मनुष्य शरीर से जितना दुर्गंध उत्तपन्न हो के वायु और जल का बिगाड़ कर , रोगोत्प्तत्ति का निमित्त होने से ,प्राणियों को दुःख प्राप्त कराता है,उतना ही पाप उस मनुष्य को होता है ! इसलिए उस पापकर्म के निवारणार्थ , उतना सुगन्ध व उससे अधिक , वायु व् जल में फैलाना चाहिए !और खिलाने व् पिलाने से उसी एक व्यक्ति विशेष को सुख होता है | जितना घृत और सुगन्धादि पदार्थ एक मनुष्य खाता है, उतने दृव्य के होम से लाखों मनुष्यों का उपकार होता है ! परन्तु मनुष्यादि लोग घृतादि उत्तम पदार्थ ना खावें तो उनके शरीर और आत्मा के बल की उन्नति ना हो सके ! इससे अच्छे पदार्थ खाना खिलाना भी चाहिए , परन्तू उसे होम अधिक करना उचित है , इसलिए होम करना अधिक उचित है ,। पृथ्वी पर गौ माता का अवतरण भी यजिय भावनाओं को विस्तृत करने हेतु हुआ है। गौ घृत के यज्ञ से बहुत अधिक मात्र में आक्सीजन बनती है। इसलिए होम करना अत्यावश्यक है |
इति सत्यार्थ प्रकाश तृतीय समुल्लास वर्णनः आसीत्
# इदन्नमम्

No comments:

Post a Comment