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Friday, March 18, 2016

Historical proof of Ancient Atomic War in India- History channel





Ancient Egyptian technology before Pharos-







Pi was used to build these pyramids. And who knew Pi-Indian.

Sunday, November 22, 2015

परमाणु बम का जनक - सनातनी भारत

महाभारत_कि_एक_और_सच्चाई
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#महाभारत_creat_nuclear_power
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परमाणु बम का जनक - सनातनी भारत 
आधुनिक परमाणु बम का सफल परीक्षण 16 जुलाई 1945 को New Mexico के एक दूर दराज स्थान में किया गया था| 
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इस बम का निर्माण अमेरिका के एक वैज्ञानिक Julius Robert Oppenheimer [http://en.wikipedia.org/wiki/J._Robert_Oppenheimer] के नेतृत्व में किया गया था 
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Oppenheimer को आधुनिक परमाणु बम के निर्माणकर्ता के रूप में जाना जाता है, आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकता है की इस परमाणु परीक्षण का कोड नाम Oppenheimer ने त्रिदेव (Trinity) रखा था, 
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परमाणु विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया में २३५ भार वला यूरेनियम परमाणु,बेरियम और क्रिप्टन तत्वों में विघटित होता है। प्रति परमाणु ३ न्यूट्रान मुक्त होकर अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते है। कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में परिणित हो जाता है। ऊर्जा = द्रव्यमान * (प्रकाश का वेग)२ {E=MC^2} के अनुसार अपरिमित ऊर्जा अर्थात उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते है। 
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यहाँ देखें -- [https://www.facebook.com/photo.php?fbid=374856539304046&set=a.338314332958267.1073741828.100003391094649&type=1&theater] _
Oppenheimer ने महाभारत और गीता का काफी समय तक अध्ययन किया था और हिन्दू धर्मं शास्त्रों से वे बेहद प्रभावित थे १८९३ में जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में थे, उन्होने वेद और गीता के कतिपय श्लोकों का अंग्रेजी अनुवाद किया। 
यद्यपि परमाणु बम विस्फोटट कमेटी के अध्यक्ष ओपेन हाइमर का जन्म स्वामी जी की मृत्यु के बाद हुआ था किन्तु राबर्ट ने श्लोकों का अध्ययन किया था। वे वेद और गीता से बहुत प्रभावित हुए थे। वेदों के बारे में उनका कहना था कि पाश्चात्य संस्कृति में वेदों की पंहुच इस सदी की विशेष कल्याणकारी घटना है। 
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उन्होने जिन तीन श्लोकों को महत्व दिया वे निम्र प्रकार है। 
१. राबर्ट औपेन हाइमर का अनुमान था कि परमाणु बम विस्फोट से अत्यधिक तीव्र प्रकाश और उच्च ऊष्मा होगी, जैसा कि भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को विराट स्वरुप के दर्शन देते समय उत्पन्न हुआ होगा। 
गीता के ग्यारहवें अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है- 
दिविसूर्य सहस्य भवेयुग पदुत्थिता यदि 
मा सदृशीसा स्यादा सस्तस्य महात्मन: {११:१२ गीता} 
अर्थात - आकाश में हजारों सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा वह भी वह विश्वरुप परमात्मा के प्रकाश के सदृश्य शायद ही हो। 
२. औपेन हाइमर के अनुसार इस बम विस्फोट से बहुत अधिक लोगों की मृत्यु होगी, दुनिया में विनाश ही विनाश होगा। 
उस समय उन्होंने गीता के गीता के ग्यारहवें अध्याय के ३२ वें श्लोक में वर्णित बातों का सन्दर्भ दिया - 
कालोस्स्मि लोकक्षयकृत्प्रवृध्दो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत:। 
ऋ तेह्यपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येह्यवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:।। {११:३२ गीता} 
अर्थात - मैं लोको का नाश करने वाला बढा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं,अत: जो प्रतिपक्षी सेना के योध्दा लोग हैं वे तेरे युध्द न करने पर भी नहीं रहेंगे अर्थात इनका नाश हो जाएगा। 
३. औपेन हाइमर के अनुसार बम विस्फोट से जहां कुछ लोग प्रसन्न होंगे तो जिनका विनाश हुआ है वे दु:खी होंगे विलाप करेंगे,जबकि अधिकांश तटस्थ रहेंगे। इस विनाश का जिम्मेदार खुद को मानते हुए वे दुखी हुए, परन्तु उन्होंने गीता में वर्णित कर्म के सिद्धांत का प्रतिपालन किया 
उन्होंने गीता के सबसे प्रसिद्ध द्वितीय अध्याय के सैंतालिसवें श्लोक का सन्दर्भ दिया। 
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। 
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोह्यस्त्वकर्माणि।। {२:४७ गीता} 
अर्थात - तू कर्म कर फल की चिंता मत कर। तू कर्मो के फल हेतु मत हो, तेरी अकर्म में (कर्म न करने में) आसक्ति नहीं होनी चाहिए! 
उन्होंने अपनी डायरी में स्वयं की मनोस्तिथि लिखी , और इस परीक्षण का कोड नेम इन्ही ३ श्लोको के आधार तथा भगवान ब्रम्हा विष्णु महेश के नाम पर ट्रिनिटी रखा... 
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तत्कालीन अमेरिकी सरकार नहीं चाहती थी की कोई और सभ्यता तथा संस्कृति आधुनिक परमाणु बम की अवधारणा का का श्रेय ले जाए.... इसीलिए इस परीक्षण के नामकरण की सच्चाई को उन्होंने Oppenheimer को छुपाने के लिए कहा.... परन्तु जापान में परमाणु बम गिरने के बाद Oppenheimer ने एक इंटरव्यू में ये बात स्वीकार की थी....... विकिपीडिया भी दबी जुबान में ये बात बोलता है... [http://en.wikipedia.org/wiki/Trinity_(nuclear_test)#Name] 

 
इसके अतिरिक्त 1933 में उन्होंने अपने एक मित्र Arthur William Ryder, जोकि University of California, Berkeley में संस्कृत के प्रोफेसर थे, के साथ मिल कर भगवद गीता का पूरा अध्यन किया और परमाणु बम बनाया 1945 में | परमाणु बम जैसी किसी चीज़ के होने का पता भी इनको भगवद गीता, रामायण तथा महाभारत से ही मिला, इसमें कोई संदेह नहीं | Oppenheimer ने इस प्रयोग के बाद प्राप्त निष्कर्षों पर अध्यन किया और कहा की विस्फोट के बाद उत्पन विकट परिस्तियाँ तथा दुष्परिणाम जो हमें प्राप्त हुए है ठीक इस प्रकार का वर्णन भगवद गीता तथा महाभारत आदि में मिलता है | 
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बाद में Oppenheimer के खुलासे के बाद भारी पैमाने पर महाभारत और गीता आदि पर शोध किया गया उन्हें इस बात पर बेहद आश्चर्य हुआ की इन ग्रंथो में "ब्रह्माश्त्र" नामक अस्त्र का वर्णन मिलता है जो इतना संहारक था की उस के प्रयोग से कई हजारो लोग व अन्य वस्तुएं न केवल जल गई अपितु पिघल भी गई| ब्रह्माश्त्र के बारे में हमसे बेहतर कौन जान सकता है इसका वर्णन प्रत्येक पुराण आदि में मिलता है... जगत पिता भगवान ब्रह्मा द्वारा असुरो के नाश हेतु ब्रह्माश्त्र का निर्माण किया गया था... 
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इस शोध पर लिखी गई कई किताबो में से एक है : [ The Atoms of Kshatriyashttp://www.amazon.com/The-Atoms-Kshatriyas-Azsacra-Zarathustra/dp/8182533309
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रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु श्रीलक्ष्मण ने जब ब्रह्माश्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कह कर रोक दिया की अभी इसका प्रयोग उचित नही अन्यथा पूरी लंका साफ़ हो जाएगी | 
इसके अतिरिक्त प्राचीन भारत में परमाण्विक बमों के प्रयोग होने के प्रमाणों की कोई कमी नही है । सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि) में अनुसन्धान से ऐसी कई नगरियाँ प्राप्त हुई है जो लगभग 5000 से 7000 ईसापूर्व तक अस्तित्व में थी| वहां ऐसे कई नर कंकाल इस स्थिति में प्राप्त हुए है मानो वो सभी किसी अकस्मात प्रहार में मारे गये हों... इनमें रेडिएशन का असर भी था | वह कई ऐसे प्रमाण भी है जो यह सिद्ध करते है की किसी समय यहाँ भयंकर ऊष्मा उत्पन्न हुई जो केवल परमाण्विक बम या फिर उसी तरह के अस्त्र से ही उत्पन्न हो सकती है 
उत्तर पश्चिम भारत में थार मरुस्थल के एक स्थान में दस मील के घेरे में तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव्ह राख की मोटी सतह पाई जाती है। वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी परमाणु विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे। 
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एक शोधकर्ता के आकलन के अनुसार प्राचीनकाल में उस नगर पर गिराया गया परमाणु बम जापान में सन् 1945 में गिराए गए परमाणु बम की क्षमता से ज्यादा का था। 
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मुंबई से उत्तर दिशा में लगभग 400 कि.मी. दूरी पर स्थित लगभग 2,154 मीटर की परिधि वाला एक अद्भुत विशाल गड्ढा (crater), जिसकी आयु 50,000 से कम आँकी गई है, भी यही इंगित करती है कि प्राचीन काल में भारत में परमाणु युद्ध हुआ था। शोध से ज्ञात हुआ है कि यह गड्ढा crater) पृथ्वी पर किसी 600.000 वायुमंडल के दबाव वाले किसी विशाल के प्रहार के कारण बना है किन्तु इस गड्ढे (Crater) तथा इसके आसपास के क्षेत्र में उल्कापात से सम्बन्धित कुछ भी सामग्री नहीं पाई जाती। फिर यह विलक्षण गड्ढा आखिर बना कैसे? 
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सम्पूर्ण विश्व में यह अपने प्रकार का एक अकेला गड्ढा (Crater) है। 
महाभारत में सौप्तिक पर्व अध्याय १३ से १५ तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गए है| 
महाभारत युद्ध का आरंभ 16 नवंबर 5561 ईसा पूर्व हुआ और 18 दिन चलाने के बाद 2 दिसम्बर 5561 ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । 3 नवंबर 5561 ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया । 
{ तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी थी । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने मे समर्थ थी । 
तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।। } 
{ इसके बाद भयंकर वायु चलने लगी । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे । 
आकाश में बड़ा शब्द (ध्वनि ) हुआ । पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई| 
सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अध्याय १४ } 
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यहाँ वेदव्यास जी लिखते हैं कि - 
“जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ वषों तक पर्जन्यवृष्ठी (जीव-जंतु , पेड़-पोधे आदि की उत्पति ) नहीं हो पाती 
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ये लिंक दे रहा हूँ इसे ओपन करके ध्यान पूर्वक पढ़ें -http://www.bibliotecapleyades.net/ancientatomicwar/esp_ancient_atomic_07.htm]
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