Showing posts with label व्यास-ऋषि. Show all posts
Showing posts with label व्यास-ऋषि. Show all posts

Thursday, December 18, 2014

व्यास-ऋषि

!!!---: व्यास-ऋषि :---!!!
===============

इतिहास में 28 व्यासों का उल्लेख प्राप्त होता है। पाराशर्य व्यास अन्तिम व्यास थे। 

(1.) प्रथम व्यासः---भारतीय इतिहास में ब्रह्मा सर्वप्रथम उत्पन्न हुएः--"भूताना ब्रह्मा प्रथमोत जज्ञे" (अथर्ववेद) ब्रह्मा सर्वविद्याविशारद थेः--"स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठामथर्वाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह" (मु.उप. 1.1) ब्रह्मा ने सारी विद्या अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्वा को प्रदान की। इस अथर्वा का ही दूसरा नाम भृगु था। इस भृगु ने अपने पिता ब्रह्मा से वेद-विद्या प्राप्त कर सारे संसार में फैला दिया। इस कार्य के कारण वे व्यास कहलाए। ये प्रथम व्यास थे।

(2.) दूसरे व्यास मातरिश्वा या वायु थे। "ते देवा इन्द्रमब्रुवन्निमां नो वाचं व्याकुर्विति सोsब्रवीद्वरं वृणै मह्यं चैवैष वायवे च सह।"---तैत्तिरीय-संहिता--6.4.7, पृ.277 के अनुसार वायु और इन्द्र ने व्याकरण शास्त्र की रचना की थी। (तुलना कीजिएः---"बृहस्पतिरिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच।" महाभाष्य--1.1.1)। प्रक्रिया कौमुदी, भाग-1 में भी आया हैः---"दिव्यं वर्षसहस्रमिन्द्रो बृहस्पतेः सकाशात् प्रतिपदपाठेन शब्दान् पठन् नान्तं जगामेति।"

इन्द्र व्याकरण के प्रथम व्याख्याता थे, उन्होंने इस काम में वायु से सहयोग लिया था---तै.सं.6.4.7)।

वायु-पुराण--2.44 में वायु को "शब्द-शास्त्र-विशारद" कहा है। यामलाष्टक-तन्त्र में आठ व्याकरणों में वायव्य-व्याकरण का उल्लेख है।

वायु हनुमान् के पिता थे। इनकी पत्नी अञ्जनी थीः--अञ्जनीगर्भसम्भूतः।" (वायुपुराण--60.73) हनुमान् भी अपने पिता के समान शब्द-शास्त्र के महान् वेत्ता थे।

वायु के आचार्य ब्रह्मा थेः--"ब्रह्मा ददौ शास्त्रमिदं पुराणं मातरिश्वने।" (वायुपुराण--103.58)

वायु के शिष्य उशना कवि थेः--"तस्माच्चोशनसा प्राप्तम्"--(वायुपुराण--103.58)
वायु महान् योद्धा भी थे। वे ब्रह्मवादी थे। उन्होंने वायुपुर नाम से एक नगर भी बसाया था। सम्प्रति इनके नाम से कोई संहिता उपलब्ध नहीं है।

(3.) तृतीय व्यास उशना काव्य थे। इनके पिता भृगु थे, जिनका एक नाम कवि भी था। कवि के पुत्र होने के कारण तृतीय व्यास काव्य कहलाए। ये भार्गव-वंशियों में प्रथम अधिपति थे। अथर्ववेद के प्रधान कर्ता उशना काव्य ही थे। पारसियों के धार्मिक-ग्रन्थ "जेन्दावेस्ता" अथर्वा और उसना काव्य की प्रचुर सामग्री मिलती है। ये उशना काव्य अनेक असुर सम्राटों के पुरोहित भी थे। इन्होंने वेदों का बहुत प्रचार किया था। उशना बहुत बडे वैद्य (भिषक्) भी थे।

(4.) चतुर्थ व्यास बृहस्पति थे। ये देवों के पुरोहित थेः--बृहस्पतिर्वै देवानां पुरोहितः--(ऐ.ब्रा. 8.26)। व्याकरण के प्रथम प्रवक्ता ब्रह्मा थे तो द्वितीय प्रवक्ता बृहस्पति ही थे। ये अङ्गिरा के पुत्र थे, अतः आङ्गिरस् कहलाए। इन्हें सुराचार्य भी कहा जाता है। ये वाणी के पति थे--वाक्पति---भार्यामर्पय वाक्पतेस्त्वम्"--मत्स्यपुराण--23.4

देवगुरु बृहस्पति ने अनेक शास्त्रों का प्रवचन किया था। जैसेः--सामगान, अर्थशास्त्र, इतिहास-पुराण, वेदाङ्ग, व्याकरण, ज्योतिष्, वास्तुशास्त्र, अगदतन्त्रादि।

(5.) वेदों के पाँचवे व्यास विवस्वान् आदित्य थे। ये अदिति के पुत्र होने के कारण "आदित्य" कहलाए। शुक्ल-यजुर्वेद के आदि प्रवक्ता विवस्वान् आदित्य ही थे। परम्परा से इसका ज्ञान याज्ञवल्क्य ने प्राप्त किया। शतपथ-ब्राह्मण के अनुसार विवस्वान् की शिष्य-परम्पराः---

आदित्य
आभिणी वाक्
नेध्रुवि काश्यप
हारीत काश्यप
वार्षगण असित
बाहयोग जिह्वावान्
वाजश्रवा
कुश्रि
उपवेशि
आरुणि उद्दालक
वाजसनेय याज्ञवल्क्य

(6.) छठे व्यास वैवस्वत् यम हुए। ये उपर्युक्त (5.) विवस्वान् के ही पुत्र थे, इसलिए वैवस्वत् कहलाए। यम इन्द्र के चाचा थे जो सप्तम व्यास हुए। इन्द्र यम से आयु में छोटे थे। यम आयु में बडे थे। यम से इन्द्र ने वेद-पुराण पढे थेः---"मृत्युश्चेन्द्राय वै पुनः" (वायुपुराण--103.60)
"जेन्दावेस्ता" में यम को "यिम" कहा जाता है। 

vaidiksanskrit