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Wednesday, September 9, 2015

दिति और अदिति के मार्ग


😶 "दिति और अदिति के मार्ग ! " 🌞
🔥🔥ओ३म् दिते: पुत्राणामदितेरकारिषमव देवानां बृहतामनर्वणाम् । 🔥🔥
🍃🍂 तेषां हि धाम गभिषक् समुद्रियं नैनान् नमसा परो अस्ति कश्चन ।। 🍂🍃

अथर्व० ७ । ७ । १

ऋषि:- अथर्वा ।। देवता- अदिति: ।। छन्द:- आर्षीजगती ।।

शब्दार्थ-
दिति के पुत्रों (दैत्यों) को मैनें अदिति का कर लिया है, उन्हें मैनें उन महान् अपराश्रित, देवों के अधीन कर लिया है। उन देवों का तेज बड़ा गम्भीर है, क्यूंकि वह नित्य शक्ति के समुद्र से उत्पत्र हुआ है, नम्रता की शक्ति से युक्त इन देवों से परे, बढ़कर और कोई नहीं है।

विनय:-
दिति और अदिति दोनों मुझमें हैं। खण्डित होने वाली विकृति (माया) दिति है और खण्डित न होने वाली प्रकृति (मूलशक्ति) अदिति है। दैत्यों और आदित्यों (देवों) की ये दोनों माताएँ अपने पुत्रों द्वारा मेरे ह्रदय में संघर्ष किया करती हैं। दिति मेरे ह्रदय में स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष, भय, काम, लोभ आदि असनातन विकारी भावों को जनित करती है और अदिति से परोपकार, करुणा, प्रेम, निर्भयता, वैराग्य, निष्कामता आदि सनातन भावों के पुत्र पैदा हो रहे हैं, पर मेरे इस ह्रदय के संघर्ष में मैं इन दिति के पुत्रों को, इन दैत्य भावों को, अदिति के बना देता हूँ। उन महान् सनातन देवों द्वारा इन दैत्यों को दबा देता हूँ, नीचा कर देता हूँ। वे देव बृहित् हैं और अपराश्रित हैं; ये दैत्य (आसुरभाव) तो इन देवों के ही आश्रित हैं। संसार में ये देवभाव न हों, तो ये आसुरी भाव चल ही न सकें। संसार में सत्य के आश्रय से ही झूठ चल रहा है। सत्य शुद्ध सनातन और अविनाशी, नित्य होता है।अतएव मैं उन सत्य-सनातन दैवी भावों द्वारा इन आसुरी विचारों को सदा दबा देता हूँ। यह क्यों न हो जबकि उन देवों का तेज अति गम्भीर है। वे दैवभाव अपना तेज उस अखण्ड-प्रकृति (परमात्मा) के अक्षय समुद्र द्वारा ग्रहण करते हैं। अतएव मेरे क्षुद्र दुर्भाव इन दैवभावों के धाम (तेज) का पार नहीं पा सकते। इन दुर्भावों में अपनी कुछ शक्ति नहीं होती, इनका अपना कोई आधार नहीं होता; अतः कुछ समय तक उछल-कूद करके अपनी उत्तेजना और अशांति सहित स्वयमेव विनष्ट हो जाते हैं। दैवभावों की अगाध नम्रता ही इन्हें हरा देती है। दैवभावों में यह राजसिक उछल-कूद व अशांति नहीं होती, उनकी सात्त्विक नमस्( नम्रता) में ही सबको नमा देने की अक्षय शक्ति होती है। देवों की इस नम्रता की अगाध शक्ति को हरा सकने वाली और कोई शक्ति संसार में नहीं है, अतः सचमुच इस नम्र, गम्भीर, अचलप्रतिष्ठ दैवभावों की ही सदा विजय होती है। एवं, मेरी इस ह्रदय भूमि में देव-दैत्यों के संग्राम में दिति से उत्पत्र होने वाले पुत्र अदिति (नित्यशक्ति) की अखण्डित शक्ति के अधीन हो जाते हैं, उनके दैवी तेज के सामने ये दब जाते हैं, वहीं विलीन हो जाते हैं।
यही सुर और असुर रुपी महाभारत का संग्राम हर व्यक्ति के ह्रदय में हलचल उथल ,पुथल मचाये है । जो व्यक्तीं पुरुषार्थ द्वारा सत्य की राह पर चलकर इन दोष रुपी असुरों से युद्ध करके इन्हें पराजित करता है उसकी अवश्य ही पांडवों की विजय के समान विजय होती है । तथा सदा के लिए इस महाघोर दुःखरूप संसार से रक्षा होती है।जो असत्य की अथवा आसुरी शक्ति को काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, अभिमान आदि में रत रहता है वो कौरव पक्ष के समान नष्ट भ्रष्ट हो जाता है।
सत्यमेव जयते


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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩ऊँचा रहे वैदिक विनय से