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Sunday, March 13, 2016

त्राटक साधना

त्राटक साधना से दिव्य दृष्टि कैसे जागृति करें
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मानवी विद्युत का अत्यधिक प्रवाह नेत्रों द्वारा ही होता है, इसलिए जिस प्रकार कल्पनात...्मक विचार शक्ति को सीमाबद्ध करने के लिए ध्यान योग की साधना की जाती है, उसी प्रकार मानवी विद्युत प्रवाह को दिशा विशेष में प्रयुक्त करने के लिए नेत्रों से ईक्षण शक्ति की सधना की जाती है। इस प्रक्रिया को त्राटक का नाम दिया गया है।
त्राटक साधना का उद्देश्य अपनी दृष्टि क्षमता में इतनी तीक्ष्णता उत्पन्न करना है कि वह दृश्य की गहराई में उतर सके और उसके अन्तराल में जो अति महत्त्वपूर्ण घटित हो रहा है उसे पकड़ने और ग्रहण करने में समर्थ हो सके। वैज्ञानिकों, कलाकारों, तत्त्वदर्शियों में यही विशेषता होती है कि सामान्य समझी जाने वाली घटनाओं को अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हैं और उसी में से ऐसे तथ्य ढूँढ़ निकालते हैं जो अद्भुत एवं असाधारण सिद्ध होते हैं।

दिव्य चक्षुओं से सम्भव हो सकने वाली सूक्ष्म दृष्टि और चर्म चक्षुओं की एकाग्रता युक्त तीक्ष्णता के समन्वय की साधना को त्राटक कहते हैं। इसका योगाभ्यास में अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। वेधक दृष्टि में हानिकारक और लाभदायक दोनों तत्त्व निहित हैं । यह तो सामान्य स्तर के त्राटक उपचार का किया कौतुक हुआ। अध्यात्म क्षेत्र में आगे बढ़ने वाले इसी प्रयोग की उच्च भूमिका में प्रवेश करके दिव्य दृष्टि विकसित की जा सकती है और उस अदृश्य को देख पाते हैं जिसे देख सकना चर्म चक्षुओं के लिए असम्भव है ।
त्राटक का वास्तविक उद्देश्य दिव्य दृष्टि प्राप्त करना ही है जिससे सूक्ष्म जगत देखा जा सकता है। अतः जमीन में दबी हुई रत्न राशि को खोजा या पाया जा सकता है। देश, काल, पात्र की स्थूल सीमाओं को लाँघ कर अविज्ञात और अदृश्य का परिचय प्राप्त किया जा सकता है। दिव्य दृष्टि से तो किसी के अन्तः क्षेत्र के गहराई में प्रवेश करके वहाँ ऐसा परिवर्तन किया जा सकता है जिससे उसका जीवन का स्तर एवं स्वरूप ही बदल जाय। इस प्रकार त्राटक की साधना यदि सही रीति से सही उद्देश्य के लिए की जा सके तो उससे साधक को अन्त चेतना के विकसित होने का असाधारण लाभ मिलता है साथ ही जिस प्राणी या पदार्थ पर इस दिव्य दृष्टि का प्रभाव डाला जाय उसे भी विकासोन्मुख करके लाभान्वित किया जा सकता है।

विधि :
यह सिद्धि रात्रि में अथवा किसी अँधेरे वाले स्थान पर करना चाहिए। प्रतिदिन लगभग एक निश्चित समय पर बीस मिनट तक करना चाहिए। स्थान शांत एकांत ही रहना चाहिए। साधना करते समय किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शारीरिक शुद्धि व स्वच्छ ढीले कपड़े पहनकर किसी आसन पर बैठ जाइए।
त्राटक के लिये किसी भगवान, देवी, देवता, महापुरुष के चित्र, मुर्ति या चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा गोलाकार, चक्राकार, बिन्दु, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, आदि दृष्य का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए त्राटक केंद्र को अपने से लगभग ३ फीट की दूरी पर अपनी आंखों के बराबर स्तर पर रखकर उसे सामान्य तरीके से लगातार बिना पलक झपकाए जितनी देर तक देख सकें देखें। कुछ दिनों उपरांत आपको ज्योति के प्रकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देगा। मन मे कोई विचार न आने दें। धीरे धीरे मन शांत होने लगेगा।
इस स्थिति के पश्चात उस ज्योति में संकल्पित व्यक्ति व कार्य भी प्रकाशवान होने लगेगा। इस आकृति के अनुरूप ही घटनाएँ जीवन में घटित होने लगेंगी। इस अवस्था के साथ ही आपकी आँखों में एक विशिष्ट तरह का तेज आ जाएगा। जब आप किसी पर नजरें डालेंगे, तो वह आपके मनोनुकूल कार्य करने लगेगा।
इस सिद्धि का उपयोग सकारात्मक तथा निरापद कार्यों में करने से ईश्वरीय कृपा से त्राटक शक्ति की वृद्धि होने लगती है। त्राटक सिद्धि योगियों में दृष्टिमात्र से अग्नि उत्पन्न करने वाली ऊर्जा आ जाती है। इस सिद्धि से मन में एकाग्रता, संकल्प शक्ति व कार्य सिद्धि के योग बनते हैं। कमजोर नेत्र ज्योति वालों को इस साधना को शनैः-शनैः वृद्धिक्रम में करना चाहिए।
योगेश मिश्र जी !