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Saturday, June 13, 2015

गायत्री मन्त्र /Gayatri Mantra and Kundalini


गायत्री मन्त्र जप /उच्चारण मात्र से स्वचालित प्रक्रिया द्वारा शरीर की 24 ग्रन्थियों (चक्रों) के जागरण, स्फुरण का रहस्य~

(गायत्री के ग्रन्थि योग का परिचय) 

1. मनुष्य की देह में जो चक्र और ग्रन्थियाँ गुप्त रूप से रहती हैं- वे चक्र और ग्रन्थियाँ मनुष्य के शुद्ध ह्रदय में प्रचण्ड प्रेरणा को प्रदान करती हैं। उन समस्त चक्र और ग्रन्थियों को जाग्रत करके साधना में रत मनुष्य कुण्डलिनी का साक्षात्कार करता है। वह ही ग्रन्थि योग कहलाता है।

2. गायत्री के अक्षरों का गुम्फन ऐसा है जिससे समस्त गुह्म ग्रन्थियाँ जाग्रत हो जाती हैं। जाग्रत हुई ये सूक्ष्म ग्रन्थियाँ साधक के मन में निस्सन्देह शीघ्र ही दिव्य शक्तियों को पैदा कर देती हैं।

3. मनुष्यों के अन्तःकरण में गायत्री मन्त्र के अक्षरों से सूक्ष्म भूत चौबीस शक्तियाँ प्रकट होती हैं।

4. मनुष्य के शरीर में अनेकों सूक्ष्म ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनमें से छै प्रधान ग्रन्थियों/चक्रों का सम्बन्ध कुण्डलिनी-शक्ति जागरण से है। यथा शून्य चक्र, आज्ञा चक्र, विशुद्धारष्य चक्र, अनाहत चक्र, मणिपूरक चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र एवं मूलाधार चक्र। उनके अतिरिक्त और भी अनेकों महत्वपूर्ण ग्रन्थियाँ हैं, जिनका जागरण होने से ऐसी शक्तियों की प्राप्ति होती है, जो जीवनोन्नति के लिए बहुत ही उपयोगी हैं।

5. हमें ज्ञात है कि विभिन्न अक्षरों का उच्चारण मुख के विभिन्न स्थानों से होता है- कुछ का कंठ से, तालू से, होठों एवं दाँतों आदि स्थानों से। जिन स्थानों से गायत्री के विभिन्न शब्दों अक्षरों का मूल उद्गम है वे स्थान भिन्न हैं। शरीर के अन्तर्गत विविध स्थानों के स्नायु समूह तथा नाडी तन्तुओं का जब स्फुरण होता है तब उस शब्द का पूर्व रूप बनता है जो मुख में जाकर उसके किसी भाग से प्रस्फुटित होता है।

6. गायत्री के 24 अक्षर इसी प्रकार के हैं, जिनका उद्गम स्थान इन 24 ग्रन्थियों पर है। जब हम गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते हैं तो क्रमशः इन सभी ग्रन्थियों पर आघात पहुँचता है और वे धीरे-धीरे सुप्त अवस्था का परित्याग करके जागृति की ओर चलती हैं। हारमोनियम बजाते समय जिस परदे/ बटन पर हाथ रखते हैं, वह स्वर बोलने लगता है। इसी प्रकार इन 24 अक्षरों के उच्चारण से वे 24 ग्रन्थियाँ झंकृत होने लगती हैं। इस झंकार के साथ उनमें स्वयंमेव (Automatically) जागृति की विद्युत दौड़ती है। फलस्वरूप धीरे-धीरे साधक में अनेकों विशेषतायें पैदा होती जाती हैं और उसे अनेकों प्रकार के भौतिक तथा आध्यात्मिक लाभ मिलने लगते हैं।

7. गायत्री मन्त्र के चौबीसों अक्षर अपने-अपने स्थान पर अवस्थिति उन शक्तियों को जगाते हैं - जिनके फलस्वरूप विविध प्रकार के लाभ होते हैं। इतने महान लाभों के लिए कोई पृथक क्रिया नहीं करनी पड़ती, केवल गायत्री मन्त्र के शब्दोच्चारण मात्र से स्वयंमेव ग्रन्थि जागरण होता चलता है और साधक से अपने आप ग्रन्थि योग की साधना होती चलती है।

8. सम्भवतः यही कारण है कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों में, प्रत्येक धार्मिक क्रिया में, पूजा-पाठ में, दैनिक सन्ध्या उपासना में, विभिन्न संस्कारों में- जब भी हो सके अधिकाधिक एवं बार-बार गायत्री मन्त्र का उच्चारण / पाठ / जप करने का विधि-विधान सम्मिलित किया गया है।


By DR SK SHUKLA