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Sunday, March 13, 2016

इष्ट देव की पूजा की आवश्यकता क्यों ?

इष्ट देव की पूजा की आवश्यकता क्यों ?

व्यक्ति शारीरिक रूप से कितना भी सामर्थ्यवान हो यदि वह यात्रा पैदल करे तो यात्रा का समय अधिक लगेगा .. यही यात्रा यदि कार ...अथवा हवाई जहाज से की जाये तो यात्रा का समय और भी कम किया जा सकता है, उसी प्रकार आध्यात्मिक जगत के कुछ नियम होते है और उन नियमों की अपनी सीमाए होती है .
साधारणतः सभी व्यक्ति यह समझते है कि हम किसी भी स्वरुप की अराधना कर सकते है किन्तु यहाँ पर यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि इश्वर ने विभिन्न स्वरुप क्यों धारण किये ? यदि रूप धारण ही करना था तो एक स्वरुप से भी काम चल सकता था .इश्वर के विभिन्न रूप उस सर्वशक्तिमान इश्वर के विभिन्न गुणों और कार्यों का निर्धारण करते है . जैसे विद्या की प्राप्ति के लिए सरस्वती जी , विघ्नों को दूर करने के लिए गणपति जी और धन की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी जी की अराधना की जाती है क्योंकि उस विशेष स्वरुप में एक विशेष गुण की ऊर्जा होती है जिससे वह विशेष इच्छापूर्ती शीघ्र हो जाती है किन्तु इस का अर्थ यह नहीं होता कि सभी स्वरूपों की अराधना एक साथ कर ली जाये। यदि किसी व्यक्ति के पास दस कार हो तो वह सभी करों में एक साथ यात्रा नहीं कर सकता है। इसी प्रकार सभी स्वरूपों की अराधना एक साथ नहीं की जा सकती है । इष्ट देव इश्वर के उसी स्वरुप को बनाया जाता है जो ऊर्जा जीव की ऊर्जा स्तर के अनुकूल हो और उसके सबसे निकट हो। इष्ट देवता ही कुण्डलिनी शक्ति अथवा आत्म ज्ञान के जागरण के लिए प्रथम द्वार होते हैं . यदि प्रथम द्वार ही बंद हो तो दिव्य चेतना ऊर्जा का प्रवाह कैसे प्रारम्भ होगा .
हिन्दू पद्धति में मुख्यतः पांच इष्ट देवता सांसारिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए बताये गए है – सूर्य देव , शक्ति आराधना (दुर्गा , लक्ष्मी , सरस्वती) , भगवान् विष्णु और उनके अन्य अवतार और भगवान् शिव . दक्षिण भारत में कार्तिकेय भगवान् को इष्ट देवता का स्थान दिया गया है . निम्नलिखित देव ग्रहों के अधिपति है –
• सूर्य —विष्णु , रमा, शिव
• चन्द्र —कृष्ण, शिवा, पार्वती
• मंगल – हनुमान , श्री नरसिम्हा, दुर्गा
• बुध – विष्णु
• गुरु – विष्णु, श्री वामन, दत्तात्रेय
• शुक्र - महा लक्ष्मी, परशुराम , माँ गौरी
• शनि - हनुमान, कूर्मा, शिव, विष्णु
• राहु – माँ दुर्गा
• केतु – गणेश , मत्स्य
ग्रहों के माध्यम से व्यक्ति की उर्जा का स्तर और अनुकूलता का निर्धारण कर इष्ट का निर्धारण किया जाता है। इष्ट अत्यंत महत्त्वपूर्ण सीढ़ी है उस अनन्त को पाने के लिए । एक जागृत और सिद्ध गुरु शिष्य के शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक स्तर को ग्रहों के माध्यम से ज्ञात कर विभिन्न स्तरों को संतुलन करने हेतु उपयुक्त इष्ट देव और मंत्र का चुनाव करता है। जब सही इष्ट की आराधना और सही मंत्र का निरंतर जाप किया जाता है तो शरीर , मन और आत्मा के मध्य नकारात्मक कर्मों की बाधाएं हटने लगती है और परम चेतना से संपर्क स्थापित होने लगता है।