जहाँ अन्य संप्रदायों में अन्य जीवों को उपभोग का साधन समझा जाता है, केवल हिंदु धर्म ही सभी जीवों से प्रेम की शिक्षा देता है । एकमात्र हिंदु धर्म ही है जो न केवल मानव-मात्र अपितु प्राणी-मात्र के कल्याण की शिक्षा देता है ।
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥
गीता -अध्याय 5 श्लोक 18...
जो लोग विद्या और विनय संपन्न होकर
ब्राह्मण ,गाय ,कुत्ता , हाथी और चंडाल
को समान दृष्टि से देखते हैं , वास्तव में
वही पंडित कहलाने के योग्य हैं .
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥
गीता -अध्याय 6 श्लोक 32
जो लोग सभी प्राणियों को अपने जैसा , और
उनके सुख दुःख को भी अपना जैसा समझते
हैं ,वही लोग परम श्रेष्ठ योगी कहलाते हैं
http://hindu/geeta/toc.htm
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥
गीता -अध्याय 5 श्लोक 18...
जो लोग विद्या और विनय संपन्न होकर
ब्राह्मण ,गाय ,कुत्ता , हाथी और चंडाल
को समान दृष्टि से देखते हैं , वास्तव में
वही पंडित कहलाने के योग्य हैं .
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥
गीता -अध्याय 6 श्लोक 32
जो लोग सभी प्राणियों को अपने जैसा , और
उनके सुख दुःख को भी अपना जैसा समझते
हैं ,वही लोग परम श्रेष्ठ योगी कहलाते हैं
http://hindu/geeta/toc.htm
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