Monday, February 16, 2015

यज्ञ में पशु वध नहीं किया जाता है

जैसी कुछ लोगों की प्रचलित मान्यता है
कि यज्ञ में पशु वध किया जाता है,
वैसा बिलकुल नहीं है | वेदों में यज्ञ
को श्रेष्ठतम कर्म या एक
ऐसी क्रिया कहा गया है जो वातावरण
को अत्यंत शुद्ध करती है |
अध्वर इति यज्ञानाम –
ध्वरतिहिंसा कर्मा तत्प्रतिषेधः
निरुक्त २।७
निरुक्त या वैदिक शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र में
यास्काचार्य के अनुसार यज्ञ का एक नाम
अध्वर भी है | ध्वर का मतलब है हिंसा सहित
किया गया कर्म, अतः अध्वर का अर्थ
हिंसा रहित कर्म है | वेदों में अध्वर के ऐसे
प्रयोग प्रचुरता से पाए जाते हैं |
महाभारत के परवर्ती काल में वेदों के गलत
अर्थ किए गए तथा अन्य कई धर्म – ग्रंथों के
विविध तथ्यों को भी प्रक्षिप्त किया गया |
आचार्य शंकर वैदिक
मूल्यों की पुनः स्थापना में एक सीमा तक
सफल रहे | वर्तमान समय में स्वामी दयानंद
सरस्वती – आधुनिक भारत के पितामह ने
वेदों की व्याख्या वैदिक भाषा के
सही नियमों तथा यथार्थ प्रमाणों के आधार
पर की | उन्होंने वेद-भाष्य, सत्यार्थ प्रकाश,
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा अन्य
ग्रंथों की रचना की | उनके इस साहित्य से
वैदिक मान्यताओं पर आधारित व्यापक
सामाजिक सुधारणा हुई तथा वेदों के बारे में
फैली हुई भ्रांतियों का निराकरण हुआ |
आइए,यज्ञ के बारे में वेदों के मंतव्य को जानें

अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परि भूरसि
स इद देवेषु गच्छति
ऋग्वेद १ ।१।४
हे दैदीप्यमान प्रभु ! आप के द्वारा व्याप्त
हिंसा रहित यज्ञ सभी के लिए लाभप्रद दिव्य
गुणों से युक्त है तथा विद्वान
मनुष्यों द्वारा स्वीकार किया गया है | ऋग्वेद
में सर्वत्र यज्ञ को हिंसा रहित कहा गया है
इसी तरह अन्य तीनों वेद भी वर्णित करते हैं |
फिर यह कैसे माना जा सकता है कि वेदों में
हिंसा या पशु वध की आज्ञा है ?
यज्ञों में पशु वध की अवधारणा उनके
(यज्ञों ) के विविध प्रकार के नामों के कारण
आई है जैसे अश्वमेध यज्ञ, गौमेध यज्ञ
तथा नरमेध यज्ञ | किसी अतिरंजित
कल्पना से भी इस संदर्भ में मेध का अर्थ वध
संभव नहीं हो सकता |
यजुर्वेद अश्व का वर्णन करते हुए कहता है –
इमं मा हिंसीरेकशफं पशुं कनिक्रदं वाजिनं
वाजिनेषु
यजुर्वेद १३।४८
इस एक खुर वाले, हिनहिनाने वाले तथा बहुत से
पशुओं में अत्यंत वेगवान प्राणी का वध मत
कर |अश्वमेध से अश्व को यज्ञ में बलि देने
का तात्पर्य नहीं है इसके विपरीत यजुर्वेद में
अश्व को नही मारने का स्पष्ट उल्लेख है |
शतपथ में अश्व शब्द राष्ट्र या साम्राज्य के
लिए आया है | मेध अर्थ वध नहीं होता | मेध
शब्द बुद्धिपूर्वक किये गए कर्म को व्यक्त
करता है | प्रकारांतर से उसका अर्थ मनुष्यों में
संगतीकरण का भी है | जैसा कि मेध शब्द के
धातु (मूल ) मेधृ -सं -ग -मे के अर्थ से स्पष्ट
होता है |
राष्ट्रं वा अश्वमेध:
अन्नं हि गौ:
अग्निर्वा अश्व:
आज्यं मेधा:
(शतपथ १३।१।६।३)
स्वामी दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश
में लिखते हैं :-
राष्ट्र या साम्राज्य के वैभव, कल्याण और
समृद्धि के लिए समर्पित यज्ञ ही अश्वमेध
यज्ञ है | गौ शब्द का अर्थ पृथ्वी भी है |
पृथ्वी तथा पर्यावरण की शुद्धता के लिए
समर्पित यज्ञ गौमेध कहलाता है | ” अन्न,
इन्द्रियाँ,किरण,पृथ्वी, आदि को पवित्र
रखना गोमेध |” ” जब मनुष्य मर जाय, तब
उसके शरीर का विधिपूर्वक दाह करना नरमेध
कहाता है | ”
३.गौ – मांस का निषेध
वेदों में पशुओं की हत्या का विरोध तो है
ही बल्कि गौ- हत्या पर तो तीव्र
आपत्ति करते हुए उसे निषिद्ध माना गया है |
यजुर्वेद में गाय को जीवनदायी पोषण
दाता मानते हुए गौ हत्या को वर्जित
किया गया है |
घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने मा हिंसी:
यजुर्वेद १३।४९
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत
मार |
आरे गोहा नृहा वधो वो अस्तु
ऋग्वेद ७ ।५६।१७
ऋग्वेद गौ- हत्या को जघन्य अपराध घोषित
करते हुए मनुष्य हत्या के तुल्य मानता है और
ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड
का विधान करता है |
सूयवसाद भगवती हि भूया अथो वयं
भगवन्तः स्याम
अद्धि तर्णमघ्न्ये विश्वदानीं पिब
शुद्धमुदकमाचरन्ती
ऋग्वेद १।१६४।४०
अघ्न्या गौ- जो किसी भी अवस्था में
नहीं मारने योग्य हैं, हरी घास और शुद्ध जल के
सेवन से स्वस्थ रहें जिससे कि हम उत्तम सद्
गुण,ज्ञान और ऐश्वर्य से युक्त हों |वैदिक
कोष निघण्टु में गौ या गाय के
पर्यायवाची शब्दों में अघ्न्या, अहि- और
अदिति का भी समावेश है | निघण्टु के
भाष्यकार यास्क इनकी व्याख्या में कहते हैं -
अघ्न्या – जिसे कभी न मारना चाहिए | अहि –
जिसका कदापि वध नहीं होना चाहिए |
अदिति – जिसके खंड नहीं करने चाहिए | इन
तीन शब्दों से यह भलीभांति विदित होता है
कि गाय को किसी भी प्रकार से पीड़ित
नहीं करना चाहिए | प्राय: वेदों में गाय
इन्हीं नामों से पुकारी गई है |
अघ्न्येयं सा वर्द्धतां महते सौभगाय
ऋग्वेद १ ।१६४।२७
अघ्न्या गौ- हमारे लिये आरोग्य एवं सौभाग्य
लाती हैं |
सुप्रपाणं भवत्वघ्न्याभ्य:
ऋग्वेद ५।८३।८
अघ्न्या गौ के लिए शुद्ध जल
अति उत्तमता से उपलब्ध हो |
यः पौरुषेयेण क्रविषा समङ्क्ते यो अश्व्येन
पशुना यातुधानः
यो अघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने
तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च
ऋग्वेद १०।८७।१६
मनुष्य, अश्व या अन्य पशुओं के मांस से पेट
भरने वाले तथा दूध देने
वाली अघ्न्या गायों का विनाश करने
वालों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए

Sri Ram and his Ancestors

हिन्दू धर्म में श्री राम चन्द्र जी भगवान के रूप
में पूजे जाते हैं !!! उनके वंश वृक्ष का अवलोकन
करें ।।
शास्त्रों के अनुसार
ब्रह्माजी की उन्चालिसवी पीढ़ी में भगवाम
श्रीराम का जन्म हुआ था । श्री राम
को श्रीहरि विष्णु का सातवाँ अवतार
माना जाता है।
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे – इल, इक्ष्वाकु,
कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त,करुष,
महाबली, शर्याति और पृषध।
श्री राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ
था और एक मान्यता के अनुसार जैन धर्म के
तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।
मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि,
निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह
से यह वंश परम्परा चलते-चलते
हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगरतक
पहुँची। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के


राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी।
रामायण के बालकांड में गुरु
वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन
किया गया है जो इस प्रकार है ……….
१ – ब्रह्माजी से मरीचि हुए।
२ – मरीचि के पुत्र कश्यप हुए।
३ – कश्यप के पुत्र विवस्वान थे।
४ – विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत
मनु के समय जल प्रलय हुआ था।
५ – वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम
इक्ष्वाकु था।
इक्ष्वाकु ने
अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस
प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की।
६ – इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए।
७ – कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था।
८ – विकुक्षि के पुत्र बाण हुए।
९ – बाण के पुत्र अनरण्य हुए।
१०- अनरण्य से पृथु हुए
११- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ।
१२- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए।
१३- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था।
१४- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए।
१५- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ।
१६- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं
प्रसेनजित।
१७- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।
१८- भरत के पुत्र असित हुए।
१९- असित के पुत्र सगर हुए।
२०- सगर के पुत्र का नाम असमंज था।
२१- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए।
२२- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए।
२३- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए।
भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर
उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे।
२४- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए।
रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश
होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम
रघुवंश हो गया,तब से श्री राम के कुल को रघु
कुल भी कहा जाता है।
२५- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए।
२६- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे।
२७- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए।
२८- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था।
२९- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए।
३०- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए।
३१- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे।
३२- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए।
३३- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था।
३४- नहुष के पुत्र ययाति हुए।
३५- ययाति के पुत्र नाभाग हुए।
३६- नाभाग के पुत्र का नाम अज था।
३७- अज के पुत्र दशरथ हुए।
३८- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण
तथा शत्रुघ्न हुए।
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39)
पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ…..
जय श्री राम !!

DHARMA IS NOT A RELIGION.धर्म

"धर्म" शब्द सर्वप्रथम हिंदु संस्कृति में प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ केवल कोई उपासना पद्धति न होकर उच्च मानवीय गुणों से है । अतः धर्म केवल एक है, और वह है- "सनातन हिंदु धर्म".. जहाँ धर्म के कई लक्षण बताए गये हैं--मनुस्मृति
मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं
शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं
धर्मलक्षणम्।। (मनुस्मृति ६.९२)
(धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, शौच
(स्वच्छता), इन्द्रियों को वश मे रखना, बुद्धि,
विद्या, सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म
के लक्षण हैं।)
याज्ञवक्य
याज्ञवल्क्य ने धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए
हैं:
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्।।
(अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच
(स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह
(इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम),
दया एवं शान्ति)
श्रीमद्भागवत
श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में सनातन
धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे बड़े
ही महत्त्व के हैं :
सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:।
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय
आर्जवम्।।
संतोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:।
नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।।
अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च
यथार्हत:।
तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।।
श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:।
सेवेज्यावनतिर्दास्यं
सख्यमात्मसमर्पणम्।।
नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:।
त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन
तुष्यति।।
महात्मा विदुर
महाभारत के महान यशस्वी पात्र विदुर ने धर्म
के आठ अंग बताए हैं -
इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन,
दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ ।
उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार
इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के
लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य
आदि अंगों का आचरण करने वाला महान बन
जाता है।
तुलसीदास द्वारा वर्णित धर्मरथ
सुनहु सखा, कह कृपानिधाना, जेहिं जय होई
सो स्यन्दन आना।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका, सत्य सील दृढ़
ध्वजा पताका।
बल बिबेक दम पर-हित घोरे,
छमा कृपा समता रजु जोरे।
ईस भजनु सारथी सुजाना, बिरति चर्म
संतोष कृपाना।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचण्डा, बर
बिग्यान कठिन कोदंडा।
अमल अचल मन त्रोन सामना, सम जम
नियम सिलीमुख नाना।
कवच अभेद बिप्र-गुरुपूजा, एहि सम बिजय
उपाय न दूजा।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें, जीतन कहँ न
कतहूँ रिपु ताकें।
महा अजय संसार रिपु, जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होई दृढ़, सुनहु सखा मति-
धीर।। (लंकाकांड)
पद्मपुराण
ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते।
दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ।।
अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते।
एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत।।
(अर्थात ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, दान, संयम,
क्षमा, शौच, अहिंसा, शांति और अस्तेय इन
दस अंगों से युक्त होने पर ही धर्म
की वृद्धि होती है।)
धर्मसर्वस्वम्
जिस नैतिक नियम को आजकल 'गोल्डेन रूल'
या 'एथिक आफ रेसिप्रोसिटी' कहते हैं उसे
भारत में प्राचीन काल से मान्यता है। सनातन
धर्म में इसे 'धर्मसर्वस्वम्" (=धर्म का सब
कुछ) कहा गया है:
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं
श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।।
(पद्मपुराण, शृष्टि 19/357-358)
(अर्थ: धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो ! और
सुनकर इसका अनुगमन करो। जो आचरण
स्वयं के प्रतिकूल हो, वैसा आचरण दूसरों के
साथ नहीं करना चाहिये।)

Saturday, February 7, 2015

kalidas

Kalidas
Kalidas Sanskrit language were the greatest poet and playwright. Kalidas name literally means, "servant of Kali". Kalidas were devotees of Shiva. He is India's mythology andphilosophy creating compositions of the base. Kalidasa your decking to pretty simple and melodious language containing in particular are known. They are unique andirresistable description upmaen is great. The major part of their literature and music ofhis creating an analogy not. They are also the principal literature literary juice dressing table with idealist traditions and moral values is properly taken care of. His name is immortal and their location is in diameter and Valmiki tradition.
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Time
There is little dispute about the lifetime of Kalidas. Ashok and, according to documents obtained from the reign of agnimitra Kalidas lifetime from the third century BC to the first century is considered to be the middle. Kalidas malvikagnimitram, produced by the hero agnimitra ruler II drama written. Agnimitra was ruled in 170 by isapurva So Kalidas is considered a lifetime later. In Indian tradition are many stories associated with Kalidas and vikramaditya. It is considered one of the navratnon of vikramaditya. The secret rulers Chandragupta vikramaditya and historian Kalidas his successor kumargupt add That reign was in the fourth century. It is believed that Chandragupta II vikramaditya of Lee and his reign is considered the golden era. It is noted that in his writings, produced by Kalidas Kings except did not mention his ashraydata or an empire. The truth is that the purveyor and put up their name of their drama based on vikramorvashiyam. Did not mention a secret ruling by Kalidas. While many of the name ruler vikramaditya The poet Kalidas one of these are the Durbar. Most scholars believe that in the reign of Kalidas, produced offspring, whose reign was isapurva 100 century.
Biography
Kalidas shaklo-seeming were beautiful and there were navratnon of a Durbar of vikramaditya. But it is said that early life were illiterate and stupid in Kalidas. Kalidas married Princess of the vidyottama name. It is said that vidyottama was the pledge that anyone who beat in her will, she shastrarth with the same will marry. When vidyottama beat shastrarth by scholars all the insults hurt by some scholars have made her shastrarth Kalidas. There was silence in esoteric asks questions, vidyottama That signals his intellect muted Kalidas only would answer. Vidyottama feel that answering the question are esoteric esoteric Kalidas. For example, vidyottama question as open hand slap the Kalidas shown thought it was threatening. His answer showed the Kalidas in ghunsa, vidyottama that he is saying that they are different, though the five indriyan All are powered by a mind. Wedding of vidyottama & vidyottama Kalidas was then revealed the truth that Kalidas are illiterate. He can say to colleagues and Kalidas home back home without that true pundits come. Kalidas has true mind black goddess worship and bless them, they become knowledgeable and affluent. Enlightenment when they returned home, she called kapatam by udghatya babe khadka door (door open, Babe). Vidyottama kashchid vagvisheshaah asti and amazed by said-(find a scholar). Kalidas has vidyottama the sarsanghchalak being a Patriarch he believed and the sentence sat kavyon gave in. Kumarsambhavam is the start of the first term, from meghdutam-astottarasyam dishi is-kashchitkanta, and is the beginning of raghuvansham-vagarthaviva by.
Kalidas is also the birthplace of dispute, but given their special love for Ujjain peopleregard a resident of Ujjain. Say was murdered in Sri Lanka of Kalidas.
Compositions
Abhigyan shakuntalam Theatre major compositions: Kalidas, vikramovshiryam andmalvikagnimitram. EPIC: raghuvansham and kumarsambhavam khandakavya:meghdutam and ritusanhar
Are major drama-drama malvikagnimitram Kalidas (. and agnimitra), vikramorvashiyam(Vikram and set up their) abhigyan shakuntalam (Shakuntala's identity), and.
Malvikagnimitram Kalidas's first creation, which is the story of King agnimitra. The daughter of an exiled servant agnimitra. picture seems to love. When agnimitra, wife ofthe shows he is enticed. in prison. But incidentally, and prove its love. Princess-connection is accepted.
Abhigyan shakuntalam Kalidas's second creation caused their jagtaprasiddhi. In addition to English and German translation of the drama of the world in many languages. It is the story of King Dushyant who is one an abandoned Sage daughter shakuntala (daughter of vishwamitra's yagna Kunda and Maneka) seems to be in love with. Gandharva marriage both manages the forest. King Dushyant came back to his capital. Meanwhile, give the curse that he turned into Sage Shakuntala in disconnection which insulted the Sage himself will forget it. After much kshamaprarthana do little to soften the curse Sage Stating that the King's ring to show them everything will be missing. But the way he gathered the capital ring is lost. The situation then became more serious

कालिदास
कालिदास संस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार थे। कालिदास नाम का शाब्दिक अर्थ है, "काली का सेवक"। कालिदास शिव के भक्त थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की। कलिदास अपनी अलंकार युक्त सुंदर सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके ऋतु वर्णन अद्वितीय हैं और उनकी उपमाएं बेमिसाल। संगीत उनके साहित्य का प्रमुख अंग है और रस का सृजन करने में उनकी कोई उपमा नहीं। उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी साहित्यिक सौन्दर्य के साथ साथ आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। उनका नाम अमर है और उनका स्थान वाल्मीकि और व्यास की परम्परा में है।

समय
कालिदास के जीवनकाल के बारे में थोड़ा विवाद है। अशोक और अग्निमित्र के शासनकाल से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, कालिदास का जीवनकाल पहली शताब्दी से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच माना जाता है। कालिदास ने द्वितीय शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर मालविकाग्निमित्रम् नाटक लिखा। अग्निमित्र ने १७० ईसापू्र्व में शासन किया था, अतः कालिदास का जीवनकाल इसके बाद माना जाता है। भारतीय परम्परा में कालिदास और विक्रमादित्य से जुड़ी कई कहानियां हैं। इन्हें विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक माना जाता है। इतिहासकार कालिदास को गुप्त शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और उनके उत्तराधिकारी कुमारगुप्त से जोड़ते हैं, जिनका शासनकाल चौथी शताब्दी में था। ऐसा माना जाता है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की उपाधि ली और उनके शासनकाल को स्वर्णयुग माना जाता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि कालिदास ने शुंग राजाओं के छोड़कर अपनी रचनाओं में अपने आश्रयदाता या किसी साम्राज्य का उल्लेख नहीं किया। सच्चाई तो ये है कि उन्होंने पुरुरवा और उर्वशी पर आधारित अपने नाटक का नाम विक्रमोर्वशीयम् रखा। कालिदास ने किसी गुप्त शासक का उल्लेख नहीं किया। विक्रमादित्य नाम के कई शासक हुए, संभव है कि कालिदास इनमें से किसी एक के दरबार में कवि रहे हों। अधिकांश विद्वानों का मानना है कि कालिदास शुंग वंश के शासनकाल में थे, जिनका शासनकाल १०० सदी ईसापू्र्व था।
जीवनी
कालिदास शक्लो-सूरत से सुंदर थे और विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में एक थे। लेकिन कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे। कालिदास की शादी विद्योत्तमा नाम की राजकुमारी से हुई। ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा ने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वह उसी के साथ शादी करेगी। जब विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों को हरा दिया तो अपमान से दुखी कुछ विद्वानों ने कालिदास से उसका शास्त्रार्थ कराया। विद्योत्तमा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे। विद्योत्तमा को लगता था कि कालिदास गूढ़ प्रश्न का गूढ़ जवाब दे रहे हैं। उदाहरण के लिए विद्योत्तमा ने प्रश्न के रूप में खुला हाथ दिखाया तो कालिदास को लगा कि यह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है। उसके जवाब में कालिदास ने घूंसा दिखाया तो विद्योत्तमा को लगा कि वह कह रहा है कि पाँचों इन्द्रियाँ भले ही अलग हों, सभी एक मन के द्वारा संचालित हैं। विद्योत्तमा और कालिदास का विवाह हो गया तब विद्योत्तमा को सच्चाई का पता चला कि कालिदास अनपढ़ हैं। उसने कालिदास को धिक्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे पंडित बने बिना घर वापिस नहीं आना। कालिदास ने सच्चे मन से काली देवी की आराधना की और उनके आशीर्वाद से वे ज्ञानी और धनवान बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे घर लौटे तो उन्होंने दरवाजा खड़का कर कहा - कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि (दरवाजा खोलो, सुन्दरी)। विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा -- अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः (कोई विद्वान लगता है)। कालिदास ने विद्योत्तमा को अपना पथप्रदर्शक गुरू माना और उसके इस वाक्य को उन्होंने अपने काव्यों में जगह दी। कुमारसंभवम् का प्रारंभ होता है- अस्तोत्तरस्याम् दिशि से, मेघदूतम् का पहला शब्द है- कश्चित्कांता, और रघुवंशम् की शुरुआत होती है- वागर्थविवा से।
कालिदास के जन्मस्थान के बारे में भी विवाद है, लेकिन उज्जैन के प्रति उनकी विशेष प्रेम को देखते हुए लोग उन्हें उज्जैन का निवासी मानते हैं। कहते हैं कि कालिदास की श्रीलंका में हत्या कर दी गई थी।
रचनाएं
कालिदास की प्रमुख रचनाएं नाटक: अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोवशीर्यम् और मालविकाग्निमित्रम्। महाकाव्य: रघुवंशम् और कुमारसंभवम् खण्डकाव्य: मेघदूतम् और ऋतुसंहार
नाटक कालिदास के प्रमुख नाटक हैं- मालविकाग्निमित्रम् (मालविका और अग्निमित्र), विक्रमोर्वशीयम् (विक्रम और उर्वशी), और अभिज्ञान शाकुन्तलम् (शकुंतला की पहचान)।
मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की पहली रचना है, जिसमें राजा अग्निमित्र की कहानी है। अग्निमित्र एक निर्वासित नौकर की बेटी मालविका के चित्र के प्रेम करने लगता है। जब अग्निमित्र की पत्नी को इस बात का पता चलता है तो वह मालविका को जेल में डलवा देती है। मगर संयोग से मालविका राजकुमारी साबित होती है, और उसके प्रेम-संबंध को स्वीकार कर लिया जाता है।
अभिज्ञान शाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है जो उनकी जगतप्रसिद्धि का कारण बना। इस नाटक का अनुवाद अंग्रेजी और जर्मन के अलावा दुनिया के अनेक भाषाओं में हुआ है। इसमें राजा दुष्यंत की कहानी है जो वन में एक परित्यक्त ऋषि पुत्री शकुन्तला (विश्वामित्र और मेनका की बेटी) से प्रेम करने लगता है। दोनों जंगल में गंधर्व विवाह कर लेते हैं। राजा दुष्यंत अपनी राजधानी लौट आते हैं। इसी बीच ऋषि दुर्वासा शकुंतला को शाप दे देते हैं कि जिसके वियोग में उसने ऋषि का अपमान किया वही उसे भूल जाएगा। काफी क्षमाप्रार्थना के बाद ऋषि ने शाप को थोड़ा नरम करते हुए कहा कि राजा की अंगूठी उन्हें दिखाते ही सब कुछ याद आ जाएगा। लेकिन राजधानी जाते हुए रास्ते में वह अंगूठी खो जाती है। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब शकुंतला को पता चला कि वह गर्भवती है। शकुंतला लाख गिड़गिड़ाई लेकिन राजा ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया। जब एक मछुआरे ने वह अंगूठी दिखायी तो राजा को सब कुछ याद आया और राजा ने शकुंतला को अपना लिया। शकुंतला शृंगार रस से भरे सुंदर काव्यों का एक अनुपम नाटक है। कहा जाता है काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला (कविता के अनेक रूपों में अगर सबसे सुन्दर नाटक है तो नाटकों में सबसे अनुपम शकुन्तला है।)
कालिदास का नाटक विक्रमोर्वशीयम बहुत रहस्यों भरा है। इसमें पुरूरवा इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी से प्रेम करने लगते हैं। पुरूरवा के प्रेम को देखकर उर्वशी भी उनसे प्रेम करने लगती है। इंद्र की सभा में जब उर्वशी नृत्य करने जाती है तो पुरूरवा से प्रेम के कारण वह वहां अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है। इससे इंद्र गुस्से में उसे शापित कर धरती पर भेज देते हैं। हालांकि, उसका प्रेमी अगर उससे होने वाले पुत्र को देख ले तो वह फिर स्वर्ग लौट सकेगी। विक्रमोर्वशीयम् काव्यगत सौंदर्य और शिल्प से भरपूर है।
महाकाव्य
इन नाटकों के अलावा कालिदास ने दो महाकाव्यों और दो गीतिकाव्यों की भी रचना की। रघुवंशम् और कुमारसंभवम् उनके महाकाव्यों के नाम है।
रघुवंशम् में सम्पूर्ण रघुवंश के राजाओं की गाथाएँ हैं, तो कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।
मेघदूतम् और ऋतुसंहारः उनके गीतिकाव्य हैं। मेघदूतम् में एक विरह-पीड़ित निर्वासित यक्ष एक मेघ से अनुरोध करता है कि वह उसका संदेश अलकापुरी उसकी प्रेमिका तक लेकर जाए, और मेघ को रिझाने के लिए रास्ते में पड़ने वाले सभी अनुपम दृश्यों का वर्णन करता है। ऋतुसंहार में सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
अन्य
इनके अलावा कई छिटपुट रचनाओं का श्रेय कालिदास को दिया जाता है, लेकिन विद्वानों का मत है कि ये रचनाएं अन्य कवियों ने कालिदास के नाम से की। नाटककार और कवि के अलावा कालिदास ज्योतिष के भी विशेषज्ञ माने जाते हैं। उत्तर कालामृतम् नामक ज्योतिष पुस्तिका की रचना का श्रेय कालिदास को दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि काली देवी की पूजा से उन्हें ज्योतिष का ज्ञान मिला। इस पुस्तिका में की गई भविष्यवाणी सत्य साबित हुईं।