!!!---: गीता-उपदेश :---!!!
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"तपस्विभ्योsधिको योगी ज्ञानिभ्योsपि मतोsधिकः।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।"
(गीता---6.46)
अन्वयः---हे अर्जुन ! योगी तपस्विभ्यः अधिकः ज्ञानिभ्यः अपि अधिकः मतः योगी कर्मिभ्यः अपि च अधिकः तस्माद् योगी भव।।
व्याख्याः---इस श्लोक में रहस्य समझने के लिए कर्मी और कर्मयोगी इन दो में भेद समझना आवश्यक है, फिर सब निर्मल हो जायेगा। एक मनुष्य अध्यापक, सैनिक अथवा व्यापारी है। वह अध्यापन, न्याय-रक्षा अथवा व्यापार करते समय कर्मयोगी होता है। कर्मयोग के समय विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से न डिगे, इसके लिए वह जो भजन, कीर्तन, जप-याग, अनुष्ठानादि कर्म करता है, उस समय वह कर्मी होता है। सत्य आदि की महिमा स्वाध्याय द्वारा जानता है, उस समय वह ज्ञानी होता है। अपने कर्त्व्य-पालन में क्षमता उत्पन्न करने के लिए वह शीतोष्णादि द्वन्द्व-सहन रूप तप करता है। इन सबकी परीक्षा अन्त में कर्मयोग में होती है। यदि वहाँ वह सत्य मार्ग से नहीं डिगा तो उसके ज्ञान, तप तथा कर्म सच्चे हैं अन्यथा नहीं।
इसलिए कहा---हे अर्जुन ! योगी (कर्मयोगी) का स्थान तपस्वियों से अधिक है, ज्ञानियों से भी अधिक माना गया है, कर्मियों से भी अधिक है। इसलिए तू योगी बन (और दुष्टों को मारकर क्षात्र-कर्त्तव्य का पालन कर।)
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"तपस्विभ्योsधिको योगी ज्ञानिभ्योsपि मतोsधिकः।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।"
(गीता---6.46)
अन्वयः---हे अर्जुन ! योगी तपस्विभ्यः अधिकः ज्ञानिभ्यः अपि अधिकः मतः योगी कर्मिभ्यः अपि च अधिकः तस्माद् योगी भव।।
व्याख्याः---इस श्लोक में रहस्य समझने के लिए कर्मी और कर्मयोगी इन दो में भेद समझना आवश्यक है, फिर सब निर्मल हो जायेगा। एक मनुष्य अध्यापक, सैनिक अथवा व्यापारी है। वह अध्यापन, न्याय-रक्षा अथवा व्यापार करते समय कर्मयोगी होता है। कर्मयोग के समय विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से न डिगे, इसके लिए वह जो भजन, कीर्तन, जप-याग, अनुष्ठानादि कर्म करता है, उस समय वह कर्मी होता है। सत्य आदि की महिमा स्वाध्याय द्वारा जानता है, उस समय वह ज्ञानी होता है। अपने कर्त्व्य-पालन में क्षमता उत्पन्न करने के लिए वह शीतोष्णादि द्वन्द्व-सहन रूप तप करता है। इन सबकी परीक्षा अन्त में कर्मयोग में होती है। यदि वहाँ वह सत्य मार्ग से नहीं डिगा तो उसके ज्ञान, तप तथा कर्म सच्चे हैं अन्यथा नहीं।
इसलिए कहा---हे अर्जुन ! योगी (कर्मयोगी) का स्थान तपस्वियों से अधिक है, ज्ञानियों से भी अधिक माना गया है, कर्मियों से भी अधिक है। इसलिए तू योगी बन (और दुष्टों को मारकर क्षात्र-कर्त्तव्य का पालन कर।)
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